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________________ पृष्ठांक १२-१३ १४-१५ १४ १४ १४-१५ १५-१६ : WWF धर्मकथानुयोग-विषय-सूची सूत्रांक ५ कार्तिक श्रेष्ठी का प्रव्रज्या संकल्प ५४-५७ ६ एक हजार व्यापारियों के साथ कार्तिक श्रेष्ठी का प्रव्रज्या ग्रहण ५८ ७ कार्तिक का शक होना और भविष्य में सिद्ध होना ५९-६० ३ भ. मुनिसुव्रत के तीर्थ में गंगदत्त श्रमण १ गंगदत्त देव के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न २ हस्तिनापुर में भ. मुनिसुव्रत का आगमन और गंगदत्त का धर्मश्रवण ३ गंगदत्त की प्रव्रज्या और देवत्व ४ गंगदत्त की सिद्धी ४ म. अरिष्टनेमि के तीर्थ में चित्त संभूति का कथन ६८-७६ १ ब्रह्मदत्त और चित्त का जन्म कथन २ कम्पिलपुर में चित्तसंभूति का आगमन और पूर्वभव कथन ३ कर्म-फल का चिन्तन ४ ब्रह्मदत्त ने चित्त को भोग भोगने के लिए आमन्त्रित किया ५ चित्तमुनि ने काम भोग की निन्दा की ६ ब्रह्मदत्त ने अपने निदान का वर्णन किया ७ चित्तमुनि ने आर्यकर्म करने का उपदेश दिया ८ ब्रह्मदत्त का नरक निवास ९ चित्त श्रमण की सिद्ध गति ५ भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में निषडादि श्रमण ७७-९७ १ निषढादि बारह श्रमण २ द्वारिका में श्रीकृष्ण वासुदेव ७८ ३ द्वारिका में बलदेव राजा ४ बलदेव की रेवती देवी का पुत्र निषढ कुमार भ. अरिष्टनेमि तीर्थकर का आगमन और श्रीकृष्ण की पर्युपासना ८१-८२ ६ निषढ़ ने श्रावक धर्म ग्रहण किया ८३ ७ वरदत्त अणगार ने निषढ के पूर्वभव के सम्बन्ध में प्रश्न पूछा. और भ. अरिष्टनेमि ने पूर्वभव कहा ८४ ८ निषढ पूर्वभव में वीरांगद कुमार था ८५ ९ सिद्धार्थ आचार्य के उपदेश से विरांगद का प्रव्रज्या ग्रहण करना और ब्रह्मलोक में उत्पन्न होना. ८६-८७ १० ब्रह्मलोक से च्यवकर निषढ कुमार हुआ ८८-९१ ११ निषढ की भ. अरिष्टनेमि के दर्शन की इच्छा १२ निषढ़ की इच्छा को जानकर भ. अरिष्टनेमि का आगमन १३ निषढ की प्रव्रज्या और समाधिमरण ९४-९५ १४ भ. अरिष्टनेमि से वरदत्त ने निषढ की गति के सम्बन्ध में पूछा-भगवान् ने सर्वार्थ सिद्ध विमान में उत्पन्न होने का कहा १५ भ. अरिष्टनेमि ने निषढ के महाविदेह में उत्पन्न होकर सिद्ध होने की कही भ. अरिष्टनेमि के तीर्थ में गौतम आदि अणगार ९८-१०६ १ संग्रहणी गाथा २ द्वारिका में श्रीकृष्ण वासुदेव ९९-१०१ ३ अंधकवृष्णि राजा का पुत्र गौतम कुमार १७-२० ७७ १८ १८ १८-१९ ९२ १९-२० २० २०-२१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001954
Book TitleDhammakahanuogo
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalal Maharaj, Dalsukh Malvania
PublisherAgam Anuyog Prakashan
Publication Year
Total Pages810
LanguagePrakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Story, Literature, & agam_related_other_literature
File Size20 MB
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