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बनगार
धर्म
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अतयं है । यह नहीं कहा जासकता कि इसकी मृत्यु कब कहां और किस तरहसे होगी। इसकी आयु अधिक हो तो भी अल्प है । क्योंकि ऐसा कहा है कि आजकल मनुष्योंकी आयु एकसौ बीस वर्षसे अधिक नहीं होती ।
इस प्रकारका यद्यपि यह शरीर मनुष्य पर्याय अनेक दोषोंसे दुष्ट है। फिर भी चिरकालमें और महान् कष्टोंसे प्राप्त किये हुए इसको जो कि समीचीन धर्मके धारण करनेके कारणभूत जाति कुलसे युक्त है, सबसे-देवादि पर्यायोंसे भी उत्कृष्ट बनाना चाहिये । परंतु यह बात विपरीत धर्म अर्थ काम पुरुषार्थके सेवन करनेसे प्राप्त नहीं, किंतु दुःखोंके करनेवाले पापकर्मके सम्बन्धसे रहित सुख कल्याणके करनेवाले धर्मके साधन करनेसे ही प्राप्त हो सकती है। ___ जीवको प्राप्त होनेवाली त्रसादि पर्यायोंकी उत्तरोत्तर दुर्लभताका विचार करते हैं:
जगत्यनन्तैकहषीकसंकुले त्रसत्वसंज्ञित्वमनुष्यतार्यताः ।
सुगोत्रसद्गात्रविभूतिवार्ततासुधीसुधर्माश्च यथाग्रदुर्लभाः॥८६॥ एक स्पर्शन इन्द्रियके ही धारण करनेवाले पृथ्वी जल अग्नी वायु और वनस्पती इन पांच अनंतानंत स्थावरोंसे ठसाठस भरे हुए समस्त संसारमें त्रस आदि पोयोको प्राप्त करना उत्तरोत्तर दुर्लभ है।
द्वीन्द्रियादि अवस्थाको सपर्याय कहते हैं । इसका संसारमें प्राप्त होना अत्यंत कठिन है। क्योंकि निगोदमें यह जीव अनादि व अनंत कालसे पुनः पुनः एकेन्द्रिय ही हो रहा है। जिस प्रकार भी ऊपर मुंजते हुए चनों से कोई कोई चना कदाचित् बाहर निकल पडता है। उसी तरह निगोदराशिमेंसे काललब्धिको पाकर पूर्वसंचित कर्मके उदयसे कोई कोई जीव क्वचित् कदाचित् बाहर त्रसपर्यायमें आपडता है। किंतु यहांसे पुनः निगोदराशिमें चला जाता है। यहांसे पुनः सपर्यायका प्राप्त करना इस तरह कठिन है कि जिस तरह समुद्रमें खोई हुई एक बालुकाकी कणिकाका फिर मिलजाना। इसी तरह द्वीन्द्रियसे त्रीन्द्रिय और त्रीन्द्रियसे चतु रिन्द्रिय तथा चतुरिन्द्रियसे पंचेन्द्रिय और पंचेन्द्रियोंमें भी
अध्याय