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अनगार
मान
. अर्थात णमो अरहताणं इत्यादि पंच नमस्कार मंत्र रूप गाथाके तीन अंश हैं । णमो अरईताणं णमो सिद्धाणं इन दो नमस्कार पदोंका एक अंश, और णमो आइरियाणं णमो उवज्झम्याणं इन दो नमस्कार पदोंका दसरा एक अंश, इसी प्रकार णमो लोए सबसाहूणं इम एक नमस्कारपदका तीसरा एक अंश । इनमेंसे एक एक अंशका चिन्तवन करने में जो प्राण वायु भीतर जाती और बाहर निकलती है उतनेमें एक उच्छास हो जाता है। पूर्ण गाथा का एकवार चिन्तवन करने में तीन उच्छास और नौवार चिन्तवन करनेमें सत्ताईस कछास लगते । अत एव इसी हिसाबसे सर्वत्र कायोत्सर्गके कालका प्रमाण मापा जा सकता है। जैसा कि कहा भी है कि:
सप्तविंशतिरुच्छासाः संसारोन्मूलनक्षमे ।
सन्ति पञ्च नमस्कारे नवधा चिन्तिते सति । भावार्थ-नौवार पंच नमस्कार मंत्रका चिन्तवन करने में इत्ताईम उच्छास लगते हैं। यदि इस विधिसे इम मंत्रका चिन्तवन किया जाय तो यही मंत्र समस्त संसारके संहारमें समर्थ हो सकता है। इसीसे भववनका उच्छेदन हो सकता है।
दैनिक रात्रिक या पाक्षिक आदि प्रतिक्रमण वा कायोत्सर्गके समय कितने २ उच्छ्रास होने चाहिये सो बताते हैं:
उच्छासाः स्युस्तनूत्सर्गे नियमान्ते दिनादिषु ।
पञ्चस्वष्टशतात्रिचतुःपञ्चशतप्रमाः ॥ ७२ ॥ दिन रात्रि पक्ष चतुर्मास और संवत्सर इन पांच अवमरोंपर. वीरभक्ति करते समय जो कायोत्सर्ग किया जाता है उसमें क्रमसे एकसौ आठ, चौअन, तीनसौ, चारसौ, और पांचसी उच्छास हुआ करते हैं । अर्थात् आहिक कायोत्सर्गमें एकसौ आठ, रात्रि सम्बन्धी कायोत्सर्गमें चौअन, पाक्षिकमें तीनसौ, चातुर्मासिकमें चारसौ, और सांवत्सरिक कायोत्सर्गमें पांचसो उच्छास हुआ करते हैं। जैसा कि कहा भी है कि:
ध्याय