________________
अखबार
हो उसको उसी मुजब शुद्धि-प्रायश्चित्त आलोचनपूर्वक ग्रहण करके "श्रुतजलधि" इत्यादि लघु आचायमक्ति बोलकर विधिपूर्वक उनकी वन्दना करना चाहिये । पुन: आचार्य परमेष्ठीके साथ २ शिष्यों तथा सधर्माओंको मिलकर प्रतिक्रमण भक्ति करनी चाहिये । अर्थात् “ सर्वातीचारविशुद्धयर्थ पाक्षिक प्रतिक्रमणक्रियाया पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल कर्मक्षयार्थ भावपूजावन्दनास्तवसमेत प्रतिक्रमणभक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् " ऐसा पाठ बोलकर प्रतिक्रमण भक्ति करनी चाहिये, और उसके बाद " णमो अरहंताणं" इत्यादि दण्डकका पाठ बोलकर कायोत्सर्ग धारण करना चाहिये।
उपर्युक्त परिकर्मके पूर्ण होनेपर पुनः केवल आचार्य परमेष्ठीको “थोसामि" प्रभृति दण्डक और गणधर वलयका उच्चारण करके प्रतिक्रमण दण्डकका पाठ करना चाहिये । तथा जबतक केवल आचार्य इस पाठका उच्चारण करें तब तक उन शिष्यों और सधर्माओंको कायोत्सर्गके द्वारा खडे २ वह प्रतिक्रमण दण्डकका पाठ सुनना चाहिये।
इसके अनंतर परिकर्ममें प्रवृत्त संयमी साधुओंको "थोस्सामि" प्रभृति दण्ड कका पाठ बोलना चाहिये और आचाके साथ २ "वदसमिदिदियरोधो" इत्यादि बोलकर वीरभक्ति करनी चाहिये. अर्थात “ सर्वाती चार विशद्धयर्थ पाक्षिक प्रतिक्रमण क्रियायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकलकर्म क्षयार्थ भावपूजा वन्दनास्तव समेतं निष्ठित करणवीरमक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम्" इस प्रकार उच्चारण करके पुनः " णमो अरहंताणं " इत्यादि दण्डक पाठ बोलना चाहि. ये। उसके बाद कायोत्सर्गमें प्रवृत्त होना चाहिये और पहले कायोत्सर्गके जितने उच्छास बताये हैं उतने उसमें पूर्ण करना चाहिये । उसके बाद “थोस्सामि" इत्यादि दण्डकका पाठ करके "चन्द्रप्रमं चन्द्रमरीचिगौरं" इत्यादि स्वयंभूका और " यः सर्वाणि चराचराणि" इत्यादि अंचलिकायुक्त वीरभक्ति तथा " वदसमिादिदियरोधो " आदि पाठ बोलना चाहिये।
इसके बाद साधुओंको आचार्य के साथ २ शांतिमक्ति और चतुर्विशति तीर्थकरभाक्ति करनी चाहिये । अर्थात "सर्वातीचारविशुद्धयर्थ शांतिचतुर्विशतितीर्थकरमक्तिकायोत्सर्ग करोम्यहम् " ऐसा उच्चारण करके " णमो
ताणं" इत्यादि दण्डकका पाठ बोलकर कायोत्सर्ग धारण करना चाहिये । कायोत्सर्गके अनंतर "थोस्सामि" प्रभति दण्डक बोलकर शांतिभक्ति और "रक्षाम् " इत्यादि चतुर्विशतितीर्थकर भाक्ति तथा “चउवीसं तित्थयरे" आदि
अध्याय
११२