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अनगार
अंचलिका सहित पाठको बोलकर "वदसमिदिदियरोधो" आदि पाठ बोलना चाहिये । उसके बाद साधु ओंको आचार्य के साथ ही " सर्वातीचारविशुद्धयर्थ चारित्रालोचना चार्य भक्तिकायोत्सर्ग करोम्यहम् " ऐसा पाठ बोलकर लघु चारित्रालोचनाके साथ २ वृहदाचार्यभाक्त करनी चाहिये । अर्थात “इच्छामि भत्ते चारित्ताचारो तेरसविहो परिहारविदो" इत्यादि दण्डकके द्वारा साध्य लघु चारित्रालोचनाके साथ “सिद्धगुणस्तुति" आदि वृहदाचार्यमाक्त करनी चाहिये । तदनंतर आचार्यके साथ २डी माधुओंको " वदसमिदिदियरोषो" इत्यादि पाठका उच्चारण और "सर्वांतीचारविशुद्धयर्थ बृहदालोचनाचार्य भक्तिकायोत्सर्ग करोम्यहम् " ऐसा उच्चारण करके बृहदालोचनाके साथ २ “देशकुलजाइसुद्धा" इत्यादि मध्य बृहदाचार्य भक्ति करनी चाहिये। अर्थात् यह बृहदाचार्यमक्ति "इच्छामि भत्ते पक्खियाम्म अलोचेउं पण्णारसणं दिवसाणं" इत्यादि वृहदालोचनाके साथ बृहदाचार्यभक्ति करनी चाहिये।
इसके अनंतर आचार्य परमेष्ठीके साथ ही साधुओंको “बदसमिर्दिदियरोधो" इत्यादि पाठ करके और "सर्वातीचाराविशुधर्थ शुल्लकालोचना चार्यमक्तिकायोत्सर्ग कगेम्यहम्" इस प्रकार उच्चारण करके पहले के ही समान दण्डकादिक बोलकर लघु आचार्यमक्ति करनी चाहिये । अर्थात् “प्राज्ञः प्राप्तसमस्तशास्त्रहृदयः" यहाँसे लेकर " मोक्षमार्गोपदेशका" यहांतकका लघु आचार्यभक्तिका पाठ बोलना चाहिये । इस प्रकार सम्पूर्ण क्रिया करने के बाद साधुओंको आचार्यके साथ ही न्यूनाधिकताके दोषकी शुद्धिकेलिये “सर्वातीचारविशुद्धयर्थ सिद्धचारित्रप्रति क्रमणनिष्ठितकरणवीरशान्तिचतुर्विंशतितीर्थकरचारित्रालोचनाचार्यबृहदालोचनाचार्यक्षुल्लकालोचनाचार्यभक्तीः कृत्वा तद्धीनाधिकत्वादिदोषविशुद्धयर्थ समाधिभक्तिकायोत्सर्ग करोम्यहम्" ऐसा उच्चारण करके और पहलेके ही समान दण्डकादि पाठ करके अंतमें "शास्त्राभ्यासो जिनपतिनुतिः" इत्यादि इष्टप्रार्थना करनी चाहिये । तथा सबके अंतमें साधुओंको सिद्धमक्ति श्रुतमक्ति और आचार्यमक्ति बोलकर गुरु-आचार्यकी वन्दना करनी चाहिये ।
इस प्रकार प्रतिक्रमण करने की विधि यहाँपर हमने संक्षेपमें बताई है। जिनको विशेष जानना या करना हो उन्हें किसी प्रौढ आचार्य के निकट विस्तारके साथ देखकर और सीखकर करनी चाहिये । इसी विषयम आगममें कहा है कि:
अध्याय