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बनगार
भावार्थ-पंचकल्याणक प्रतिष्ठा आदिमें तत्तत्कल्याणकके समय साधुओं और श्रावकोंको उस समयको क्रिया ऊपर लिखे मूजब माक्त पाठ बोलकर करनी चाहिये ।
ऋषि अथवा सिद्धान्त वेत्ता मुनि आदि यदि मरणको प्राप्त होजाय तो उनके शरीरकी अथवा निषधिका की वन्दना क्रिया करनेमें क्या क्या विशेषता है उसका निर्णय दो आर्यापोंके द्वारा बताते हैं:
वपुषि ऋषेः स्तौतु ऋषीन् निषेधिकायां च सिद्धशान्त्यन्तः सिद्धान्तिनः श्रुतादीन् वृत्तानुत्तरव्रतिनः ॥ ७२ ॥ द्वियुजः श्रुतवृत्तादीन् गणिनोऽन्तगुरून् श्रुतादिकानपि तान् ।
समयविदोऽपि यमादीस्तनुक्लिशो द्वयमुखानपि द्वियुजः ॥ ७३ ॥ ऋषि आदिकोंके शरीर अथवा निषेधिकाकी वन्दना भक्ति करनेमें प्रवृत्त हुए साधुओंको जिस विधिसे वन्दना करनी चाहिये वह इस प्रकार है। यदि किसी सामान्य साधुका मरण हो जाय तो उसके शरीरकी अथवा निषद्याभूमिकी वन्दना सिद्धमक्ति योगिक्ति और शांतिमक्तिको क्रमसे बोलकर करनी चाहिये । और यदि कोई सामान्य साधु सिद्धान्त वेत्ता हो तो उनका मरण होनेपर उनके शरीरकी या निषद्याभूमिकी वन्दना क्रमसे सिद्धमाक्त श्रुतभक्ति योगिभक्ति और शांतिभक्ति बोलकर करनी चाहिये । यदि कोई उत्तर व्रतोंको धारण करनेवाला साधु मरणको प्राप्त हो जाय तो उसके शरीरकी अथवा निषद्याभूमिकी वन्दना सिद्धभक्ति चारित्रमाक्ति योगिभक्ति और शांतिमक्ति पढकर करनी चाहिये । यदि कोई साधु सिद्धान्त वैत्ता मी हो और उत्तर व्रतोंको धारण करनेवाला भी हो और उसका मरण हो जाय तो उसके शरीरकी तथा निषद्याभूमिकी वंदना क्रमसे सिद्धमाक्त श्रुतमक्ति चारित्रभक्ति योगिभक्ति और शांतिभक्ति बोलकर करनी चाहिये । इसी प्रकार जो ऋषि आचार्य पद पर प्रतिष्ठित हैं उनका यदि मरण हो जाय तो उनके शरीरकी या निषद्याभूमिकी वन्दना क्रमसे सिद्धभक्ति योगिभक्ति आचार्यभक्ति और शांतिभक्ति बोलकर करनी चाहिये । तथा यदि कोई आचार्य सिद्धान्तवेता हो
अध्याय