Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

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Page 914
________________ बनगार १०२ A वन्दना क्रिया करनी चाहिये। किंतु जिनभगवान्की चल प्रतिमाकी प्रतिष्ठाके चतुर्थ दिनके अभिषेक के समय अभिषेक वन्दना अर्थात सिद्धभक्ति चैत्यभाक्ते पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्तिको बालकर वन्दना करनी चाहिये । और स्थिर प्रतिमाकी प्रतिष्ठा के चतुर्थ दिनके अभिषेक के समय पाक्षिकी क्रिया करनी चाहिये । अर्थात् सिद्धभक्ति चारित्रमा बृहदालोचना और शांतिभक्ति बोलकर वन्दना करनी चाहिये। परन्तु यह नियम केवल साधुओं के लिये समझना । जो स्वाध्यायको ग्रहण नहीं कर सकते उन गृहस्थोंकेलिये यह नियम नहीं है । उनको चाहिये कि आलोचनाको छोड़कर बाकी भक्ति बोलकर ही क्रिया करें। इस विषय में अन्यत्र भी कहा है कि: चलाचलप्रतिष्ठायां सिद्धशान्तिस्तुतिर्भवेत् । वन्दना चाभिषेकस्य तुर्यस्नाने मता पुनः ॥ सिद्धवृत्तनुतिं कुर्याद्वृहदालोचनां तथा । शान्तिमाकं जिनेन्द्रस्य प्रतिष्ठायां स्थिरस्य तु ॥ अर्थात् चल और अचल प्रतिष्ठा में सिद्धभक्ति और शांतिभक्तिके द्वारा तथा चतुर्थ दिनके स्नान के समय अभिषेक वन्दना के द्वारा और अरहंतकी स्थिर प्रतिमाकी प्रतिष्ठा में सिद्धभक्ति चारित्रभक्ति बृहदालोचना और शांतिभक्ति के द्वारा क्रिया करनी चाहिये। नामीतिक क्रियाओंके वर्णन के प्रकरण में यहां पर आचार्य पदका प्रतिष्ठापन करते समय जो क्रिया की जानी चाहिये उसकी विधि बताते हैं: सिद्धाचार्यस्तुती कृत्वा सुलभे गुर्वनुज्ञया । लात्वाचार्य पदं शान्ति स्तुयात्साधुः स्फुरद्गुणः ॥ ७५ ॥ आचार्य पदके योग्य छत्तीस विषेष गुण हुआ करते हैं। ये गुण जिन साधुओंमें पाये जाते हैं वेही इस पदपर स्थापित किये जाते हैं। इन गुणोंकी संज्ञा और स्वरूप आगे चलकर लिखेंगे। यहां पर इस पद की प्रतिष्ठापन FACEALERKYSANKASRA ९०२

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