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. शनगार
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अभिषेक शास्त्र नित्यमहोद्योत नामका बनाया जो कि मोहरूपी अंधकारको दूर करनेकेलिये सूर्य के समान है, और जिसमें महाभिषेक पूजाकी विधि बताई गई है । तथा रत्नत्रयविधानकी पूजा और उसके माहात्म्यका जिसमें वर्णन किया गया है ऐसा रत्नत्रयविधान नामका शास्त्र जिसने बनाया है, और जिसने वाग्मट संहिताका अभिप्राय व्यक्त करनेकेलिये उसके ऊपर आयुर्वेद के विद्वानोंको अभीष्ट अष्टाङ्गहृदयोद्योत नामकी टीका बनाई है। वही मैं आशाधर हूं कि जिसने अपने ही पहले बनाये हुए धर्मामृत ग्रंथमें निरूपित यति धर्मका अभिप्राय प्रकाशित करने वाली यह टीका बनाई है, जो कि मुनियोंको अतिशय प्रिय है। यदि इसके लिखते हुए कहीं अज्ञानिताके कारण स्खलन होगया हो तो धर्माचार्य तथा विद्वानोंको उसका संशोधन करके पठन करना चाहिये। . नलकच्छ नामके नगरमें उत्कृष्ट जैनधर्मका पालन करनेवाला श्रावकोंमें अग्रणी तथा देवपूजा आदि गुणों के संग्रह करने और विवेकके धारण करने एवं करुणादानके करनेमें जो सदा तत्पर रहा करता, विनय सरलता मद्रता उदारता दया और परोपकारपरता आदि गुणोंसे युक्त तथा खंडेलवाल जातिरूपी सुवर्ण माणि क्य-पद्मरागमणिके समान था ऐसा अतिशय सजन एक श्रेष्ठी रहता था, जिसका नाम तो पाप था परन्तु वस्तुतः वह पापसे सदा पराङमुख रहा करता था। उसके दो पुत्र थे एक बहुदेव दूसरा पद्मसिंह । पहला पिताके भारको धारण करनेमें समर्थ था, और दूसरेके शरीरको लक्ष्मीने आलिंगित कर रखा था । बहुदेवके तीन पुत्रथेएक हरदेव जिसमें कि अनेक गुण स्फुरायमाण थे और दूसरा उदयी तथा तीसरा स्तम्भदेव । ये तीनों ही भाई त्रिवर्गका सेवन करनेवाले गृहस्थोंके द्वारा सम्मानित थे।
एकवार हरदेवने यह प्रार्थना की कि “साधु महीचन्द्र ने मन्दज्ञानियों को प्रबोधित करने के लिये आपके धर्मामृत ग्रंथके सागारधर्म प्रकरणकी टीका आपसे ही करवादी है। परन्तु अभीतक उसके अनगार धर्म भागकी टीका नहीं बनी है। वह तीक्ष्ण बुद्धिके धारण करनेवाले विद्वानोंके लिये भी अत्यंत दुर्वाध है, विना टीकाके उसका अर्थ उनकी भी समझमें नहीं आ सकता। अत एव आप उसकी भी टीका बनाने का अनुग्रह करें। " इसके सिवाय धनचन्द्रने भी इसके लिये आग्रह किया । इसी परसे पं. आशाधरने यह टीका बनाई है जिसमें कि धर्मामृतोक्त यतिधर्मके विषयमें अच्छी तरह विचार किया गया है। विद्वानों ने इसका नाम भव्य कुमदचन्द्रिका