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नगार
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इसी प्रकार उन आशाधर के विषयमें श्री मदनकीर्ति नामके यतिपति - आचार्यने भी ये प्रज्ञापुंज हैं ऐसा प्रशंसावाक्य कहा है ।
ही आशाधर जब तुरुष्कराज साहबुद्दीनने सपादलक्ष देशपर अपना अधिकार किया तब उसके त्रास से अपने सदाचार एवं चारित्र में क्षति पडती हुई देखकर मालवा देश में आकर प्राप्त हुए, जहां पर कि विन्ध्यनरेश के बाहुबल, अन्तः सार तथा उत्साहके प्रसादसे त्रिवर्गका ओज-बल स्फुरायमाणहो रहा था। इस मालवाकी धारा न. गरी में अपने बडे परिवारको साथ लेकर आशाघरने निवास किया । यहीं पर वादिराज पंडित श्री घरसेन के शिष्य पंडित महावीर से आईत प्रमाण शास्त्र और जैनेन्द्र व्याकरणका अध्ययन किया ।
जिस आशाधरके विषय में विन्ध्यनरेशके महासांधिविग्रहिक मंत्री और कवियोंके शिरोमणि विद्वान् विहणने इस प्रकार कहा है कि
आशारत्वं मयि विद्धि सिद्धं निसर्गसौदर्यमजर्यमार्य । सरस्वतीपुत्रतया यदेतदर्थे परं वाच्यमयं प्रपञ्चः ॥
अर्थात् - आर्य ! सरस्वतीपुत्रत्वकी अपेक्षा मुझमें स्वाभाविक सौंदर्य-सहोदरता - मातृमावसे युक्त तथा अजर्य - मैत्रीभावरूप आशावरत्व सिद्ध होगया समझा।
ये आशावर जिनधर्मको उद्योतित करनेकेलिये जहां पर अर्जुनवर्मा राजाका राज्य था और श्रावकों की वस्ती बहुत अधिक थी उस नलकच्छपुरमें आकर रह ।
उन्होने पंडित देवचन्द्र प्रभृति किन श्रोताओंको थोडे ही समय में व्याकरण समुद्र के पार नहीं कर दिया, एवं उनसे समीचीन न्यायशास्त्ररूपी उत्कृष्ट अस्रको पाकर वादीन्द्र विशालकीर्ति आदिकर्मसे ऐसे कौन हैं कि
१ - विल्हणकी माताका नाम सरस्वती था और पं. आशाधरजी की सरस्वतीपुत्र उपाधि थी । २ दूसरे पक्ष में सौंदर्य अर्थ भी हो सकता है । ३ पक्षान्तरमें कभी नष्ट न होनेवाला ऐसा भी अर्थ हो सकता है ।
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