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अनगार
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अध्याय
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DOBOND BOOBS
है । इनके सिवाय एक भूमिशयन, १ दांतोंका घर्षण - दन्तधावन न करना, १ दिनमें एकवार भोजन करना १ खडे होकर भोजन करना, १ विधिपूर्वक केशोंका उत्पाटन करना, ६ पूर्वोक्त छह आवश्यकों का पालन करना, १ सर्वथा वस्त्ररहित नग्न दिगम्बर अवस्था धारण करना, और १ तेल आदिका उद्वर्तन तथा जलमें अवगाहन आदि स्वरूप स्नान न करना । ये सब मिलाकर अट्ठाईप भेद होते हैं। इनके सिवाय चौरासी लाख उत्तर गुण और अठारह हजार श्रीलकं भेद और भी हैं। दीक्षा लेनेवाले साधु आचार्यको संक्षेपसे इन उत्तर गुणों और शील के भेदों के साथ २ सम्पूर्ण उक्त मूलगुणोंका स्थापन करके व्रतारोपण सम्बन्धी प्रतिक्रमणं करना चाहिये । जहाँतक हो सके यह प्रतिक्रमण उसी दिन करना चाहिये; किंतु उसदिन उत्तम मुहूर्त आदि न बनता हो तो कुछ दिन बाद भी वह किया जा सकता है ।
दीक्षाग्रहण के समय को छोडकर अन्य समय में जो केशोंका लुंजन किया जाता है उसके कालका प्रमाण और उसकी क्रिया करनेकी विधि बताते हैं: -
लोचो द्वित्रिचतुर्मासैर्वरो मध्योऽधमः क्रमात् । लघुप्राग्भक्तिभिः कार्यः सोपवासप्रतिक्रमः ॥ ८६ ॥
केशोंका उत्पादन तीन प्रकारका हुआ करता है, -उत्तम मध्यम और जघन्य । दो महीने के अनंतर किया जाता है वह उत्कृष्ट, और जो तीन महीने के अनंतर किया जाता है वह मध्यम, तथा जो चर महीना पीछे किया जाता है वह जघन्य समझना चाहिये। साधुओं को अपनी शक्तिके अनुसार इनमें से कौनसा भी लोच अवश्यही करना चाहिये। जिस दिन लोच करना हो उस दिन उपवास और उस क्रियासम्बन्धी प्रतिक्रमण भी करना चा हिये । तथा लोच का प्रतिष्ठापन लघु सिद्धभक्ति और लघु योगिमक्ति बोलकर, एवं निष्ठापन केवल सिद्धभक्तिके द्वारा करना चाहिये। जैसा कि कहा भी है कि
लोचो द्वित्रिचतुर्मासैः सोपवासप्रतिक्रमः ॥ लघुसिद्धर्षिभक्त्यान्यः क्षम्यते सिद्धभक्तितः ॥
SEELESED 29
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