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अनगार
राज्य क्रान्ति आदिके निमित्तसे भागदौड मचजानेपर, ये उस क्षेत्रको छोडनेके निमित्त उपस्थित होनेपर वहाँस अन्यत्र-दूसरे ग्राम या देशको चले जाना चाहिये। क्योंकि नहीं तो वहां रहनेपर रत्नत्रय धर्मको विराधना हो सकती है । ऐसी अवस्थामें आषाढ शुक्ला पूर्णमासीको व्यतीत करके प्रतिपदा आदि तिथिको वहांसे जा सकते हैं। इस अपेक्षासे चार दिनका जघन्य काल बताया है । इस प्रकार स्थितिकस्पके दशवें भेदका स्वरूप समझना। किंतु मूलाराधनाकी टिप्पणी में यह दशा भेद पाद्य नामसे बताया है। उसका अभिप्राय ऐसा है कि दो दो महीनेसे निषिद्धिकाओंको देखना चाहिये । यथा:
. आचेलक्यौदेशिकाय्यागृहराजपिण्डकृतिकर्म ।
___ज्येष्ठत्रतप्रतिक्रममासं पाद्यः श्रमणकल्पः ॥ इन उपर्युक्त स्थितिकल्प सम्बन्धी दश गुणों में जो निष्ठा धारण करनेवाले, जिनकी इनमें मले प्रकार तत्परता सिद्ध हो चुकी है। एवं अनेक क्षपकों-समाधिमरण करनेवालोंका उद्धार करनेसे जिनकी विशाल कीर्ति सम्पूर्ण पृथ्वीपर फैलगई है, तथा संसारको छोडकर परलोक यात्रा करनेवाले कोका क्षपण करनेमें उद्युक्त साधुओंको जो समाधिमरणकेलिये प्रेरित करनेवाले हैं, ऐसे ही निर्यापक-आचार्य उन क्षपकोंको विशुद्धिलाम करा सकते हैं । उसके मार्गमें लगाकर उसकी यथोक्त चर्याको बता सकते हैं । जैसा कि कहा मी है कि
एतेषु दशसु नित्यं समाहितो नित्यवाच्यतामीरुः ।
क्षपकस्य विशुद्धिमसौ यथोक्तचर्या समुद्दिशति । प्रतिमायोगको धारण कर खडे हुए मुनिकी क्रिया विधि बताते हैं:
लघीयसोपि प्रतिमायोगिनो योगिनः क्रियाम् ।
कुर्युः सर्वेपि सिद्धर्षिशान्तिभक्तिभिरादरात ॥ ८२॥ सबेरेसे सायंकालतक दिनभर सूर्यकी तरफ मुखकरके कायोत्सर्ग मुद्रा धारण कर खडे रहनेको प्रतिमा
अध्याय
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