Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

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Page 930
________________ बनमार ९१८ मच्याब A SANDARI . जिनेन्द्र भगवान्की मुद्रा देवेन्द्र नरेन्द्र धरणीन्द्र और मुनीन्द्रोंके द्वारा भी पूज्य है । अत एव धर्माची. याँको जिस व्यक्ति में इस मुद्राका आरोपण करना हो उसमें उन्हें इस प्रकारकी योग्यता अवश्य देखनी चाहिये कि वह व्यक्ति प्रशस्त देश में उत्पन्न हुआ हो, मांसाहारी म्लेच्छों या वैसे ही आचरणवाले मील आदिकोंके दे. शमें उत्पन्न न हुआ हो। जिस पितासे उसकी उत्पत्ति हुई है उसका वंशानुगत आचरण शुद्ध हो । एवं जिस कुक्षिमें उसने जन्म धारण किया है वह मातृपक्ष भी निर्दोष हो तथा जिसका शरीर भी प्रशस्त हो, उसमें ऐसे कोई दोष न हों जो कि आगम में जिनलिंगको धारण करनेमें बाधक बताये हैं। और चातुर्वर्ण्य में से ब्रह्मण क्षत्रिय तथा वैश्य इन तनि उत्तम वर्णोंमें हो जो उत्पन्न हुआ है। इसी प्रकार जिसको कोई कलङ्क नहीं लगा है, ब्राह्मण स्त्री बाल गौ आदिकी हत्या आदि अपराधोंसे जो मुक्त है । और जो उस मुद्रा के धारण करने में समर्थ है, "जो अति बाल अवस्था या सुकुमार शरीरको धारण करनेवाला नहीं है, अथवा अतिवृद्धता के कारण जिसका शरीर जीर्ण और इसीलिये जिनर्लिंग के चारित्रको पालन करनेके लिये जो असमर्थ नहीं होगया है । अत एव ऐसा कहा मी है कि : ब्राह्मणे क्षत्रिये वैश्ये सुदेशकुलजातिजे । अतः स्थाप्यते लिङ्गं न निन्द्य बालकादिषु ॥ अर्थात् तीन उत्तम वर्णोंके और प्रशस्त देश कुल जातिमें उत्पन्न होनेवाले ही पुरुषमें जिनलिंगकी स्थापना करनी चाहिये । जो ब्रह्महत्या आदि के कारण निन्द्य हैं अथवा बाल्यावस्था या वृद्धावस्था आदिके धारण करनेवाले हैं उनमें उस लिंगको स्थापित न करना चाहिये। इसी प्रकार: पतितादेन सा देया जैनी मुद्रा बुधार्चिता । रत्नमाला सतां योग्या मण्डले न विधीयते जो जाति आदिसे पतित हैं उनको यह विद्वानोंके और देवोंके द्वारा भी पूज्य जिनमुद्रा न देनी चाहिये। जो रत्नोंकी माला सत्पुरुषों के धारण करने योग्य हुआ करती है वह कुत्तेके गले में नहीं पहराई जाती । तथाः नमं- ९१८

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