Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

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Page 923
________________ संयमियोंको स्नेहका भाव उत्पन्न हो सकता है। जिससे कि अनेक दोष और भी लग सकते हैं। बचार कितने ही ग्रन्थकारोंने शय्याधाविण्डोज्झाकी जगह श्य्यागृहपिण्डोझा ऐसा पाठ दिया है। उसका खुलासा इस प्रकार किया जाता है कि रास्तेमें कहींको जाते हुए रात्रिको जिस गृह-वसतिमें ठहरना या शयन आदि क्रिया करनी पडे वापर दूसरे दिन आहार न करना चाहिये । अथवा वसतिका संबन्धी द्रव्य के निमित्तसे जो भोजन आदि तयार हुआ हो उसको ग्रहण न करना यही शय्यागृहपिण्डोज्झाका अभिप्राय है। . 要惡靈靈簽證認證鑑鉴望盡該說證說幾設滋露 小蒙蒙證證認識認識說 चौथा स्थितिकल्प गुण राजकीयपिण्डोज्झा है। इसमें राजशब्दका अर्थ इक्ष्वाकु कुरु उग्रनाथ हरि आदि कुल, अथवा प्रकृति-प्रजाको पालन पोषण आदिके द्वारा अनुरंजित करनेवाला, यद्वा उसके समान् ऋद्धि के धारण करनेवाला होता है। ऐसे व्यक्तियों के घर जाकर भोजन ग्रहण न करना इसको राजकीयविण्डोज्या कहते हैं । इसका अभिप्राय यह है कि-ऐसे घरी जो नानाप्रकारके भयंकर कुत्ते आदि जान्वर स्वच्छन्द रूपसे फिरते रहते हैं उनके द्वारा उन घरों में प्रवेश करनेपर संयमीका अपघात हो सकता है । मुनिके स्वरूपको देखकर वहां घोडे गाय भैस आदि पशु बिजुक सकते हैं। और बिजुक कर स्वयं त्रासको प्राप्त हो सकते अथवा दयरों को भी त्रास दे सकते हैं, यद्वा संयमीको भी उनसे त्रास हो सकता है । गर्वसे उद्धत हुए वहांके नौकर चारो द्वाग साधुका उपहास हो सकता है । अथवा महलोमे गेककर क्खी हुई और थुनमज्ञा- रमण करनेकी इच्छासे पीडित रहनेवाली, यद्वा पुत्र आदि संततिकी अभिलाषा रखने वाली स्त्रियं अपने साथ उपभोग करने केलिये उस संयमीको जबर्दस्ती अपने घरमें ले जा सकती सुवणे कल अथवा उनके बने हुए भूषण जो इधर उधर पडे हों उनको कोई स्वयं चुराकर लेजाय और यह हल्ला करदे कि यहाँपर मुनि आये थे और तो कोई आया नहीं, ऐसी अवस्थामें मुनिके ऊपर चोरी का आरोप उपस्थित हो सकता है। यहांर ये साधु आते है सो कहीं ऐसा नोकिमहाराज इनपर विश्वास कर बैठे और इनकी बातोंमें आकर राज्यको नष्ट करदें, ऐसे विचारोंसे क्रोधादिके वशीभूत हुए दीवान मंत्री आदिक द्वारा संयमीका वध धादिक भी हो सकता है। इनके सिवाय ऐसे स्थानों में आहारकी विशुद्धि मिलना कठिन, दुध आदि विकृतिका सेवन और लोमश अमूल्य

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