Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

View full book text
Previous | Next

Page 915
________________ क्रियाकी विधि बताते हैं, सो इस प्रकार है कि-जिसके वक्ष्यमाण ३६ गुण सम्पूर्ण संघके हृदय में विशेष चमत्कार उत्पन्न कर रहे हैं ऐसे साधुको अपने गुरुकी आज्ञा-अनुमतिसे शुभ मुहूर्तमें सिद्धभक्ति और आचार्यभाक्तिको बोलकर आचार्यपद ग्रहण करना चाहिये । और उसके बाद शांतिभक्ति करनी चाहिये । भावार्थ--जिसमें आचार्यपदको धारण करने योग्य गुणोंको देखते हैं आचार्य उस साधुको इस पदके ग्रहण करनेकी आज्ञा देते हैं और इसकेलिये शुभ मुहूर्त निश्चित करते हैं । और वह साधु उनकी आज्ञानुसार उस शुभ मुहूर्तमें उस पदको ग्रहण करता है। . प्रारम्भमें सम्पूर्ण संघके समक्ष वह साधु सिद्धभक्ति और आचार्य भक्ति करता है : अनंतर आचार्य परमेष्ठी उससे कहते हैं कि आजसे तुम रहस्य-प्रायश्चित्तशास्त्रका अध्ययन और दीक्षा देने आदिका जो आचार्यपदका यार्य है उसको कर सकते हो। अब तुमको ये कार्य करने चाहिये। इस प्रकार समस्त संघके समक्ष माषण देकर उस साधुको पिच्छिका समर्पण करते हैं। और वह साधु उस पिच्छीको ग्रहण करता है । इसीको आचार्य पदका ग्रहण करना कहते हैं । इसके बाद उस साधुको शांतिभक्तिके द्वारा वंदना करनी चाहिये । जैसा कि चारित्रासारमें भी कहा है कि-"गुरूणामनुज्ञायां विज्ञानवैराग्य संपनो विनीतो धर्मशीलः स्थिरश्च भूत्वाचार्य पदव्या योग्यः साधुर्मुरुसमधे सिद्धाचार्यभक्ति कृत्वाचार्यपदवीं गृहीत्वा शांतिभक्ति कुर्यात् । " अर्थात् जो विशिष्ट ज्ञान और वैराग्यकी सम्पत्तिसे युक्त तथा विनयगुणको धारण करनेवाला धर्माचरणमें ही सदा निष्ठा रखनेवाला और प्रकृतिसे ही स्थिर है वह साधु आचार्य पदवीके योग्य समझना चाहिये । ऐसे साधुको गुरुकी आज्ञासे उनके ही समक्ष सिद्धभक्ति और आचार्यभक्ति बोलकर आचार्य पदको ग्रहण कर शांतिभक्ति करनी चाहिये। आचार्यपदकी योग्यता सिद्ध करनेवाले छत्तीस गुण कौनसे हैं सो बताते हैं: अष्टावाचारवत्त्वाद्यास्तपांसि द्वादश स्थितेः। कल्पा दशाऽऽवश्यकानि षट् षट्त्रिंशद्गुणा गणेः ॥ ६ ॥

Loading...

Page Navigation
1 ... 913 914 915 916 917 918 919 920 921 922 923 924 925 926 927 928 929 930 931 932 933 934 935 936 937 938 939 940 941 942 943 944 945 946 947 948 949 950