Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

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Page 910
________________ मानगार महीने त मांस करना इस वर्षायोगकी विधिमें और भी जो विशेषता है उसको दो श्लोकोंमें बताते हैं: मासं वासोऽन्यदैकत्र योगक्षेत्रं शुचौ व्रजेत् । मार्गेऽतीते त्यजेच्चार्थवशादपि न लंघयेत् ॥ ८॥ नभश्चतुर्थी तद्याने कृष्णां शुक्लो पञ्चमीम् । यावन्न गच्छेत्तच्छेदे कथंचिच्छेदमाचरेत् ॥ ६॥ वर्षायोगके सिवाय दूसरे समय-हेमन्त आदि ऋतमें भी आचार्य आदि श्रमणसंघको किसी भी एक स्थान या नगर आदिमें एक महीने तक के लिके निवास करना चाहिये । तथा आषाढ में मुनिसंघको वर्षायोगस्थानके लिये जाना चाहिये । अर्थात जहां चातुर्मास करना है वहां आषाढमें पहुंचजाना चाहिये । और मगसिर महीना पूर्ण होनेपर उस क्षेत्रको छोड देना चाहिये। परन्तु इतना और भी विशेष है कि उस योगस्थानपर जानेकेलिये श्रावण कृष्णा चतुर्थीका अतिक्रमण कमी नहीं करना चाहिये । भावार्थ-यदि कोई धर्मकार्यका ऐसा विशेष प्रसङ्ग उपस्थित हो जाय कि जिसमें रुक जानेसे योगक्षेत्र में आषाढके भीतर पहुंचना न बन सके तो श्रावण कृष्णा चतुर्थीतक पहुंच जाना चाहिये । परन्तु इस तिथिका उल्लंघन किसी प्रयोजनके वशीभूत होकर भी करना उचित नहीं है। इसी प्रकार साधुओंको कार्तिक शुक्ला पंचमीतक योगक्षेत्रके सिवाय अन्यत्र प्रयोजन रहते हुए भी विहार न करना चाहिये । अर्थात् यद्यपि वर्षायोगका निष्ठापन कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीको हो जाता है फिर भी साधुओंको कार्तिक शुक्ला पंचमीतक उसी स्थानपर रहना चाहिये। यदि कोई कार्यविशेष हो तो भी तबतक उस स्थानसे नहीं जाना चाहिये। यहाँपर जो वर्षायोग धारण करने की विधि बताई है उसमें यदि किसी घोर उपसर्ग आदिके आ उपस्थित होनेसे विच्छेद पडजाय अर्थात किसी कारणसे उसके समय आदिका यदि अतिकम हो जाय तो साधुसंघको उचित है कि उसके लिये प्रायश्चित्त धारण करें। भी विश अध्याय ८५८ १४-2221ASS

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