________________
खनगार
८९६
अध्याय
TANANAKHAN
यहां पर भी नंदीश्वर क्रिया ही करनी चाहिये । और विशेष यह कि नन्दीश्वरभक्तिकी जगह केवल चैत्यभक्ति ही करनी चाहिये। जैसा कि कहा भी है कि
अहिसेय वंदणासिद्धचेदिय पंचगुरुसंतिभत्तीहिं । कीर मंगळगोयर मज्झण्डियवंदणा होइ ॥
अर्थात् — सिद्धभक्ति चैत्यभक्ति पंचगुरुभक्ति और शांतिभक्तिके द्वारा अभिषेकवन्दना की जाती है । और इन्ही द्वारा मंगलगोचरमध्यान्हवन्दना भी हुआ करती है ।
मंगलगोचर बृहत्प्रत्याख्यानकी विधि बताते हैं:लात्वा बृहत्सिद्धयोगिस्तुत्या मङ्गलगोचरे । प्रत्याख्यानं बृहत्सूरिशान्तिभक्ती प्रयुञ्जताम् ॥ ६५ ॥
मंगलगोचर क्रिया करनेमें आचार्य आदिकोंको बृहत् सिद्धभक्ति और बृहत् योगिभक्ति करके भक्त प्रत्याख्यानको ग्रहण कर वृहत् आचार्यभक्ति और बृहत् शांतिभक्ति करनी चाहिये । यहाँपर " प्रयुञ्जताम्,” यह बहुवचन क्रियाका जो निर्देश किया है उससे इस बातका बोधन कराया है कि यह क्रियां आचार्य आदि
सब संघको मिलकर करनी चाहिये ।
प्रकरण के अनुसार दो इलोकों में वर्षायोग के ग्रहण और त्याग करने की विधिका उपदेश करते हैं:
ततश्चतुर्दशीपूर्वरात्रे सिद्धमुनिस्तुती ।
चतुर्दिक्षु परीत्या ल्पाश्चैत्यभक्तीर्गुरुस्तुतिम् ॥ ६६ ॥
शान्तिभक्ति च कुर्वाणैर्वर्षा योगस्तु गृह्यताम् ।
ऊर्जकृष्ण चतुर्दश्यां पश्चाद्रात्रौ च मुच्यताम् ॥ ६७ ॥ ( युग्मम् )
धर्म •
८९६