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बनगार
वीर भगवान्को निर्वाण कालिक क्रिया करनेके विषयमें जो आगमका निर्णय है उसको बताते हैं:
योगान्तेऽकोंदये सिद्धनिर्वाणगुरुशान्तयः । प्रणुत्या वीरनिर्वाणे कृत्यातो नित्यवन्दना ॥७॥
कार्तिक कृष्णा चतुर्दशीकी रात्रिके अंतिम प्रारमें वर्षा योगका निष्ठापन कर चुकनेपर श्री वर्धमान तीर्थकर भगवान्की निर्वाण क्रिया सूर्यका उदय होनेपर सिमक्ति निर्वाणमाक्ति पंचगुरुमाक्ति और शांतिमाक्त बोलकर वन्दना करके करनी चाहिये । इसके बाद साधुओं और श्रावकोंको नित्यवंदना करनी चाहिये।
भावार्थ-वर्षायोगका निष्ठापन और उसके बाद सूर्योदयके होनेपर वीर निर्वाण क्रिया और तदनंतर . नित्यवंदना । इस प्रकार क्रमसे क्रिया करनी चाहिये । पंचकल्याणकके समय करने योग्य क्रियाओं के विषयमें आगमका निर्णय प्रकट करते हैं:
__ साद्यन्तसिद्धशान्तिस्तुति जिनगर्भजनुषोः स्तुयादत्तम् ।
निष्क्रमणे योग्यन्तं विदि श्रुताद्यपि शिवे शिवान्तमपि ॥ ७॥
अध्याय
तीर्थकर भगवानका गर्मावतार कल्याणक अथवा जन्मकल्याणक जब हो तब साधुओंको यद्वा श्रावकों को क्रमसे सिद्धभक्ति चारित्रमाक्त और शान्तिमात बोलकर उस समयकी क्रिया करनी चाहिये । तथा निष्क्रमणदीक्षाकल्याणककी क्रिया मुनियों व श्रावकोंको क्रमसे सिद्धभाक्त चारित्रभाक्त योगिमाक्त और शांतिमाक्त बोलकर करनी चाहिये. इसी प्रकार ज्ञान कल्याणकी क्रिया क्रमसे सिद्धमाक्त श्रुतभाक्त चारित्र भाक्त योगिमक्ति और शांतिमक्ति बोलकर करनी चाहिये । एवं निर्वाण कल्याणक अथवा निर्वाण क्षेत्रकी वन्दना क्रिया क्रमसे सिद्धमक्ति श्रुतमक्ति चारित्रमक्ति योगिभक्ति निर्वाणमक्ति और शांतिभात बोलकर करनी चाहिये ।