Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

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Page 906
________________ चारगार 38 अध्याय P प्रति अतिभक्ति प्रकट करनेकेलिये जहांपर वाचना की गई थी उस स्थान पर छह छह कायोत्सर्ग करना चाहिये । भावार्थ - यहांपर वाचनाभूमिमें छह २ कायोत्सर्ग करनेके लिये जो कहा है उसका नियम नहीं समझना चाहिये | क्योंकि यह क्रिया सिद्धान्त और उसके अर्थाधिकारोंके प्रति उत्तम बहुमान दिखानेकेलिये ही कही गई है । अव यह क्रिया साधुओं को अपनी शक्तिके अनुसार ही करनी चहिये । अर्थात् जितनी शक्तिहो उतने ही कायोत्सर्ग करने चाहिये । - संन्यास मरणकी क्रियाओंका प्रयोग कैसे करना उसकी विधि दो श्लोकोंके द्वारा बताते हैं:संन्यासस्य क्रियादौ सा शान्तिभक्त्या विना सह । अन्तेऽन्यदा बृहद्भक्त्या स्वाध्यायस्थापनोज्झने ॥ ६१ ॥ योगेपि शेयं तत्रात्तस्वाध्यायैः प्रतिचारकैः । स्वाध्यायाग्राहिणां प्राग्वत् तदाद्यन्तादिने क्रिया ॥ ६२ ॥ संन्यास मरणकी आदिमें श्रुतपंचमी के दिनकी जो क्रिया बताई है उसमेंसे शांतिभक्तिको छोडकर बाकी सब क्रिया करनी चाहिये । अर्थात् सिद्धभक्ति और श्रुतमक्ति बोलकर श्रुतस्कन्ध के समान संन्यासका भी प्रतिष्ठापन करना चाहिये । तथा संन्यास के अंत में भी वही क्रिया करनी चाहिये। किंतु इतनी विशेषता है कि यहां पर शांतिभ कि को छोडना नहीं - उसको भी बोलना चाहिये । अर्थात् क्षपक - जो संन्यास मरण करनेवाला है उसका अन्त होनेपर शांतिभक्ति के साथ २ सिद्धभक्ति और श्रुतभक्ति बोलकर संन्यासका निष्ठापन करदेना चाहिये । तथा संन्यास के आदि और अंत के दिनको छोडकर मध्यके दिनोंमें वृहद्भक्तिपूर्वक स्वाध्यायका प्रतिष्ठापन और निष्ठापन करना चाहिये अर्थात् बृहत्तभक्ति और बृहत् आचार्य भक्ति के द्वारा उसका प्रतिष्ठापन और बृहत् श्रुतमक्ति के द्वारा उसका निष्ठा पन करना चाहिये । तथा रात्रियोग वर्षायोग आदि में भी जिन्होंने पहले ही दिन स्वाध्यापका प्रतिष्ठापन कर दिया है उन परिचारकों को संन्यास मरण करने वालेकी वैयावृत्य-सेवा शुश्रूषा करनेवालोंको उस संन्यासवसतीमें ही शयन 1 TEEEEEEEEEEEEar धर्म ८९४

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