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बनगार
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बध्याय
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४- परीषद और उपसगोंके सहन करने-जीतने में समर्थ हो ।
५ - ऐहिक विषय भोगोपभोगकी अभिलाषा तथा शरीरादिककी ममता से रहित हो ।
मानार्थ - इन पांच गुणोंसे युक्त जीव ही त्रियोगशुद्ध कर्म करनेका अधिकारी हो सकता है। जैसा कि कहा भी है कि:
सव्याधेरिव कल्पत्वे विदृष्टेरिव लोचने । जायते यस्थ संतोषो जिनवक्त्रविलोकने || परीषहसहः शान्तो जिनसूत्रविशारदः । सम्यग्दृष्टिनाविष्टो गुरुभक्तः प्रियंवदः ॥ आवश्यकमिदं धीरः सर्वकर्मनिषूदनम् । सम्यक् कर्तुमसौ योग्यो नापरस्यास्ति योग्यता ||
जिस प्रकार बीमार आदमीको नीरोगता प्राप्त होजानेपर, और अंधे मनुष्यको नेत्रोंका लाभ होजानेपर हर्ष - संतोष प्राप्त हुआ करता है; उसी प्रकार जिन भगवान के मुख कमलको देखते ही जिसको प्रसन्नता हो आती है । जो परीषोंके जीतने में समर्थ है, और जिसके क्रोधादिक कषायोंका उद्रेक नहीं पाया जाता, जो जिन भगवान के उपदिष्ट तत्त्वोंका स्वरूप समझने में कुशल है, जो सम्यग्दर्शन से युक्त, आवेश रहित, गुरुजनोंका मक्त, और प्रियवचन बोलनेवाला है, नही धीर वीर सम्पूर्ण कर्मोंको नष्ट करनेवाले इस आवश्यक कर्मके करनेका अधिकारी हो सकता है । और किसी में इसकी योग्यता नहीं रह सकती ।
पहले " क्रमवत् " ये विशेषण जो दिया है उसका तात्पर्य मंदज्ञानियों को भी भले प्रकार हो जाय इसलिये उसका अभिप्राय स्पष्ट करते हैं:
_प्रेप्सुः सिद्धिपथं समाधिमुपविश्यावेद्य पूज्यं क्रिया, - मानम्यादिलयभ्रमत्रयशिरोनामं पठित्वा स्थितः ।
के
धर्म --
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