Book Title: Anagar Dharmamrut
Author(s): Ashadhar Pt Khoobchand Pt
Publisher: Natharang Gandhi

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Page 868
________________ बनगार सिद्धनिषेधिकावीरजिनभक्तिः प्रतिक्रमे / योगिभक्तिः पुनः कार्या योगग्रहणमोक्षयोः॥ . अर्थात् प्रतिक्रमणमें सिद्धभक्ति प्रतिक्रमणभक्ति वीरभक्ति और जिन भक्ति करनी चाहिये / तथा योगके ग्रहण और मोक्ष दोनो ही अवसरोंपर योगिभक्ति ही करनी चाहिये / प्रातःकालीन देववन्दना करनेके लिये साधुओंको प्रोत्साहित करते हुए कहते हैं: योगिध्यानैकगम्यः परमविशदग्विश्वरूपः स तच्च, ' स्वान्तस्थेम्नैव साध्यं तदमलमतयस्तत्पथध्यानबीजम् / चित्तस्थैर्य विधातुं तदनवधिगुणग्रामगाढानुरागं, तत्पूजाकम कर्मच्छिदुरामिति यथासूत्रमासूत्रयन्तु // 12 // - जिसका ध्यान योगिजन किया करते हैं वह परमात्मा केवलज्ञानस्वरूप है। वह ज्ञान सर्वोत्कृष्ट पदको प्राप्त है-उससे अधिक ज्ञान कहींपर भी और किसी भी जीवके नहीं पाया जाता / तथा वह ज्ञान विशद-स्पष्ट अथवा अव्यवधान-अक्रमवर्ती है, अर्थात् युगपत् समस्त पदार्थोंको विषय करता है, और पर इन्द्रिय अथवा मनकी अपेक्षा नहीं रखता / इस ज्ञानके द्वारा जगत्के सम्पूर्ण पदार्थ-लोक तथा अलोक और त्रिकालवर्ती उनके समस्त आकार प्रतिभासित हुआ करते हैं। इस ज्ञानके धारक अरिहंत भगवान्का स्वरूप परमागममें प्रसिद्ध है। यथा:-. :" केवलणाणदिवायरकिरणकलावप्पणासियण्णाणो / "णवकेवललद्धग्गमसुजणियपरमप्पववएसो।। असहायणाणदसणसहिओ इदिकेवली हु जोगेण / जुचोत्ति सजोगिजिणो अणाइणिहणारिसे उत्तो॥" 851

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