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बचंगार
. क्रियां
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एक ही जगह अनेक अपूर्व जिनप्रतिमाओं का दर्शन होनेपर किस प्रकार क्रिया करना सो बताते हैं । तथा उनके फिर भी दर्शन के विषयमें उन प्रतिमाओंकी अपूर्वता कब समझना इसकलिये कालका प्रमाण भी दिखाते हैं।
दृष्टा सर्वाण्यपूर्वाणि चैत्यान्येकत्र कल्पयेत् ।
क्रियां तेषां तु षष्ठेऽनुश्रूयते मास्यपूर्वता ॥ ५० ॥ . यदि अनेक अपूर्व जिनप्रतिमा एक ही स्थानपर हों तो उन समीका दर्शन करके उनमेंसे जिसकी तरफ रुचि अधिक प्रवृत्त हो उस एक ही प्रतिमाको लप करके पहले कहे मूजब क्रिया करनी चाहिये । तथा उन प्रति. माओंकी अपूर्वता व्यवहारी लोगोंकी परम्परासे छठे महीने में समझनी चाहिये। विशिष्ट क्रियाओंके करने के लिये तिथिका निर्णय दिखाते हैं
त्रिमुहूर्तेपि यत्रार्क उदेत्यस्तमयत्यथ ।
स तिथिः सकलो ज्ञेयः प्रायो धम्र्येषु कर्मसु ॥ ५१ ॥ जिस दिन तीन मुहूर्ततक-कमसे कम छह घडी कालतक सूर्यका उदय अथवा अस्त पाया जाय उपवास वन्दना आदि धर्मसम्बन्धी क्रियाओंके करनेमे प्रायःवही तिथि पूर्ण मानी है ।
प्रायः कहनेका अभिप्राय यह है कि बहुधा व्यवहारी लोगोंका परम्परासे ऐसा ही व्यवहार देखने में आता है। किंतु वास्तवमें यह नियम नहीं समझना चाहिये । अतएव देश कालादिके वश-क्वचित् इसके प्रतिकूल भी व्यवहार हो सकता है। प्रतिक्रमणके विषय में क्रियाकरनेकी विधिविशेष पांच श्लोकों में बताते हैं:
पाक्षिक्यादिप्रतिक्रान्तौ वन्देरन्विधिवद्गुरुम् ।
अध्याय