________________ बनगार मावार्य-यहापरपूजा शब्दसे माव पूजाकाही ग्रहण करना चाहिये। मावपूजाका लक्षण इस प्रकार बताया है कि व्यापकानां विशुद्धानां जनानामनुगगतः / गुणानां यदनुष्यानं भावपूजेयमुच्यते // अर्थात्-अरिहंत भगवानके व्यापक और विशुद्ध गुणोंमें अनुराग भाव रखकर उनका चिन्तवन करना इसको भावपूजा कहते हैं / अत एव इस पूजाके करनेवाले के जिनेन्द्र भगवानके अनन्तानन्त ज्ञानादि गुणोंमें भक्ति या श्रद्धा दृढ हुआ करती है, और मनवचन कायकी क्रियाओंका सावध रुपसे निरोध होजानेके कारण संवर तथा ज्ञानावरणादि कर्माकी एकदेश निर्जरा भी हुआ करती है। तथा चित्तमें स्थिरता भी प्रात हुआ करती है जिससे कि / योगियों को उस उत्कृष्ट ध्यानकी सिद्धि हुआ करती है कि जिसके बलसे वे उस परमात्मका स्वयंसंवेदन कर सकते हैं। यहांपर उत्कृष्ट ध्यान शब्दसे एकत्व वितर्क अवीचार नामका शुक्लध्यान समझना चाहिये / क्योंकि परमात्माके उक्त स्वरूपका स्वसंवेदन उसीके द्वारा होता है। योगियों को चित्तकी स्थिरतासे सिद्ध होने वाले योगके आठ अंग बताये हैं।-यम नियम आसन प्राणायाम प्रत्याहार धारणा ध्यान और समाधि / इनमें से अपने विषय पर स्थिर हो जानवाल शनिकोही ध्यान कहते हैं। और जब वह ध्यान भी स्थिरीभूत हो जाता है तब उसीको समाधि कहते हैं। इस समाधि या उत्कृष्ट ध्यान अथवा प्रकृतमें एकत्ववितर्ककी सिद्धिका कारण भनकी स्थिरता और उसका भी कारण परमात्माकी पूजा-वन्दनाको जानकर योगियोंको आगमके अनुसार अवश्य ही प्रातःकालीन देववंदना करनेमें प्रवृत्त होना चाहिये। . त्रैकालिक देववन्दना किसप्रकार करनी चाहिये सो उसकी विधि बताते हैं: त्रिसन्ध्यं वन्दने युंज्याचैत्यपञ्चगुरुस्तुती। प्रियभक्ति बृहद्धक्तिष्वन्ते दोषविशुद्धये // 13 // ध्याय