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बनगार
सिद्ध भक्ति बोलकर ही करना चाहिये । अथवा साधुओंको लघु सिद्धमाक्त और लघु योगिभक्ति बोलकर प्रत्याख्यानादिका ग्रहण करना चाहिये और लघु आचार्य भक्ति बोलकर उनकी वंदना करनी चाहिये।
भोजनके अनंतर तत्काल ही प्रत्याख्यानादि ग्रहण करनेके लिये जो कहा है उसका अभिप्राय स्पष्ट करनेके लिये तत्काल प्रत्याख्यानादि ग्रहण न करनेमें दोष और थोडी देरेके लिये भी उसके ग्रहण करनेमें महान् लाम है। इस बातको बताते हैं:
प्रत्याख्यानं विना दैवात् क्षीणायुः स्याद्विराधकः ।
तदल्पकालमप्यल्पमप्यर्थपृथु चण्डवत् ॥ ३८ ॥ प्रत्याख्यानादिके ग्रहण किये बिना यदि कदाचित्-पर्वबद्ध आयुकर्मके वशसे वर्तमान आयु क्षीण हो जाय तो वह साधु विराधक समझना चाहिये । अर्थात् कारण वश यदि उसकी अकस्मात् मृत्यु हो जाय तो वह साधु प्रत्याख्यानसे रहित होनेके कारण रत्नत्रयका आराधक नहीं हो सकता । किंतु इसके विपरीत प्रत्याख्यान सहित तत्काल मरण होनेपर थोडी देरकेलिये और थोडासा ही ग्रहण किया हुआ वह प्रत्याख्यान चण्ड नामक चाण्डालकी तरह महान् फलका देनेवाला होजाता है। जैसा कि कहा भी है कि
. चण्डोऽवन्तिषु मातङ्गः किल मांसनिवृत्तितः ।।
अप्यल्पकालभाविन्याः प्रपेदे यक्षमुख्यताम् ॥ अर्थात्-उज्जयनी नगरीमें एक चण्ड नामका मातङ्ग रहता था । एक दिन वह चामकी रस्सी वट रहा था, जब कि उसकी आयु पूर्ण होनेमें थोडासा ही समय वाकी रहा था । यह बात एक ऋषिराजको मालुम हुई तब उन्होंने उसको मांस त्यागका व्रत दिया । उस मातङ्गने " ये मेरी चामकी रस्सीका बटना जबतक पूर्ण नहीं होता तब तककेलिये मेरे मांसका त्याग है " ऐसा व्रत लिया । भविव्यतानुसार रस्सी घटना पूर्ण होनेके पहले ही उसका मरण हो गया । अत एव उस व्रतके प्रसादसे वह मरकर यक्षेन्द्र हुआ।
प्रत्याख्यानादि ग्रहण करनेके अनंतर गोचार प्रतिक्रमण-भोजनसम्बन्धी दोषोंका संशोधन करना चाहिये । अंतएवं उसकी विधि बताते हैं:
बध्याय