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बमगार
अर्थात्-हे आत्मन् ! तू निद्राको जीतने के लिये ज्ञानादिके आराधन करनेमें प्रीति और संसारके दुःखोंसे भय तथा पूर्वसंचित पापोंका शोक सदा किया कर. जो स्वाध्यायके करने में असमर्थ हैं उनके लिये देव वन्दना करनेका विधान करते हैं:
सप्रतिलेखनमुकुलितंवत्सोत्सङ्गितकरः सपर्यः ।
कुर्यादेकाग्रमनाः स्वाध्यायं वन्दना पुनरशक्त्या ॥ १३ ॥ प्रतिलेखन-पीछीको हाथों में लेकर उसके साथ २ ही हाथोंको मुकुलित-अञ्जलिबद्ध करके और उन हाथोंको वक्षः स्थलके मध्ययें रखकर, पर्यङ्कासनसे बैठकर, और मनको एकाग्र बनाकर-अन्य किसी भी विषयकी तरफ अपने चित्तको न जाने देकर साधुओंको स्वाध्यायमें प्रवृत्त होना चाहिये । जैसा कि कहा भी है:
पलियंकणिसेज्जगदी पडिलेहिय अञ्जलीकदपणामो।
सुत्तत्थजोगजुत्तो पढिदव्वो आदसत्तीए ॥ अर्थात-पर्यकासनको धारण करनेवाला और पीछीयुक्त अंजलिके द्वारा किया है प्रणाम जिसने ऐसे साधुको अपनी शक्तिके अनुसार सूत्रार्थके स्वाध्यायमें प्रवृत्त होना चाहिये । और भी कहा है कि:
मनो बोधाधीनं विनयविनियुक्तं निजवपु,- . र्वच पाठायत्तं करणगणमाधाय नियतम् । दधानः स्वाध्यायं कृतपरिणति नवचने,
करोत्यात्मा कर्मक्षयमिति समाध्यन्तरमिदम् ॥ अर्थात्-मनको ज्ञानके आधीन बनाकर और अपने शरीरको विनयसे युक्त करके तथा वचनको पाठ करनेमें लगाकर और इन्द्रियों को अपने २ विषयोंसे निवृत्त करके जिन भगवान्के वचनोंकी तरफही अपना उपयोग लगाते हुए जो स्वाध्याय करता है वह आत्मा कर्मोंका क्षय कर देता है। अतएव इस स्वाध्यायको समाधि ही समझना चाहिये।
बध्याय