________________ बबबार वन्दना करने वाले साधुओंको तीनों सन्ध्याओंके समय जिनेन्द्रमगवान्की बन्दना करनेमें चैत्ववन्दना और पंचगुरुवन्दना करनी चाहिये / और जब दोषोंकी विशुद्धि करनी हो-वन्दनासंबन्धी अतीचारों या रागादि भावोंका उच्छेदन करना हो तब बृहद्भक्तियों के अन्तमें समाधि मात करनी चाहिये। जैसा कि कहा भी है कि" ऊनाधिक्यविशुद्धयर्थ सर्वत्र प्रियभक्तिकाः" अर्थात् न्यूनाधिकताके दोषकी निवृति के लिये सर्वत्र समाधिमाक्त की जाती है। आचार शास्त्रमें कहे मजबही अच्छी तरहसे क्रिया करनेवाले भी कितने ही ऐसे देखने में आते हैं कि जो केवल वृद्धाको परम्परासे चले आये व्यवहारके ही वशीभूत होकर जिन भगवानका नित्य वन्दना भी सिद्ध भक्ति चैत्यभक्ति पञ्चगुरुभाक्ति और शांतिभक्ति इन चार मक्तियोंके द्वारा ही किया करते हैं। किन्तु उनका यह व्यवहार हमारी समझसे केवल भाक्तिरूपी चुडेलका दुर्विलास ही समझना चाहिये / क्योंकि ऐसा करने में आगमकी आज्ञाका अतिक्रमण होता है। आगममें पूजा और अभिषेक मङ्गलके अवसर पर ही इन चार भक्तियोंके करने का विधान है। जिनवन्दनाके समय केवल चैत्यभक्ति और पंचगुरुमक्ति ही की जाती है / यथा: चत्यपञ्चगुरुस्तुत्या नित्या सन्ध्यासु वन्दना / सिद्धभक्त्यादिशान्त्यन्ता पूजाभिषवमङ्गले // तीनों सन्ध्याओंके समय जो जिनदेवकी नित्य वन्दनाकी जाती है वह चैत्वमक्ति और पंचगुरुभक्तिपूर्वक हुआ करती है। और पूजाके समय अथवा अभिषेक वन्दनाके समय सिद्ध भाक्त चैत्यभक्ति पंचगुरुमाक्त और शांति भक्ति ये चार भक्ति की जाती हैं। और भी कहा है कि: . जिणदेववंदणाए चेदियभत्तीय पंचगुरुभती। अर्थात-जिनदेवकी वन्दनामें चैत्यभक्ति और पंचगुरुमक्ति करनी चाहिये। " तथा-अहिसेयवंदणा सिद्धचेदिय पंचगुरुसंतिभत्तीहिं // अर्थात्-अभिषक वन्दना सिद्धभक्ति चैत्यमक्ति पंचगुरुभक्ति और शांति भक्ति के द्वारा की जाती है। बध्याय