________________ बनमार . प्रमादकी महिमा कितनी बडी है सो उदाहरण देकर स्पष्ट करते हैं: त्र्यहादऽवैयाकारणः किलैकाहादकार्मुकी। क्षणादयोगी भवति स्वभ्यासोपि प्रमादतः // 10 // यह बात लोक में प्रसिद्ध है कि मंद अभ्यास करनेवाले की तो बात ही क्या जिसने व्याकरणका खूब अच्छी तरहसे अभ्यास किया है ऐसा वैयाकरण भी तीन दिनके प्रमादसे अवैयाकरण बन जाता है / केवन तीन दिनके लिये अभ्यास छोड. देनेसे अच्छी तरह अभ्यस्त भी व्याकरणका ज्ञान विस्मृत होजाता है / इसी तरह एक दिनके प्रमादसे धानुष्क अधानुष्क होजाता है। अर्थात् केवल एक दिन अभ्यास छोडदेनेसे ही अच्छी तरहसे अभ्यस्त भी धनुर्विद्याको भूलकर अनम्यस्त सरीखा होजाता है। किंतु नि. रन्तर समाधिका अभ्यास करनेवाला योगी एक क्षणभर के लिये प्रमाद करनेपर अयोगी बनजाता है-समाधिसे च्युत होजाता है। प्रतिक्रमण और रात्रियोगका प्रतिष्ठापन तथा निष्ठापन-प्रारम्म और समाप्ति किस प्रकार करनी चाहिये सो उसकी विधि बताते हैं: भक्त्या सिद्धप्रतिक्रान्तिवीरद्विद्वादशाहताम् / प्रतिक्रामेन्मलं योगं योगिभक्त्या भजेत् त्यजेत् // 11 // प्रतिक्रमणमें चार प्रकारकी भक्ति कीजाती है / अर्थात संयममें लगे हुए मल-अतीचारों को दूर करनेके लिये साधुओंको चार प्रकारकी वन्दना करनी चाहिये ।-सिद्धभक्ति प्रतिक्रमणभक्ति, वीरमक्ति, और चतुर्विधति तीर्थकर भक्ति / तथा रात्रियोगका प्रारम्भ और समाप्ति योगि भक्तिके द्वारा ही की जाती है। " आज रात्रिको मैं इस वसतिकामें ही रहूंगा" ऐसे नियम विशेष को ही रात्रियोग कहते है. सो इस नियमको धारण करनेके पूर्व और पूर्ण होनेके अनंतर साधुओंको योगि भक्ति करनी चाहिये / जैसा कि कहा भी है कि: