________________ बनगार इसका काल अत्यल्प माना गया है / क्योंकि साधुओंकी निद्राका काल ज्यादेसे ज्यादे चार घडीका ही माना है। अर्ध रात्रिसे दो घडी पहले और दो घडी पीछेका जो काल है वही निद्राका काल है, जो कि स्वाध्यायके योग्य नहीं माना है। इस अल्पकालीन निद्राको ही क्षणयोग निद्रा समझना चाहिये / इस धणयोगनिद्राके द्वारा ही साधुजन अनवरत-दिनमें और रात्रि में किये गये ध्यानाध्ययनतपश्चरण आदिके द्वारा उत्पन्न हुए शरीरखेदको दूर किया 852 योगियों को इस निद्राके द्वारा शरीर ग्लानि दूर करके अर्धरात्रिके अनन्तर दो घडी काल बीतजानेपर तीसरी घडीके प्रारम्भमें स्वाध्यायका प्रतिष्ठापन-प्रारम्भ करना चाहिये; और उसका निष्ठापन रात्रि में जब दोघडी काल बाकी रहे तब करदेना चाहिये। इसके अनन्तर प्रतिक्रमण अर्थात् अपनेसे जो अपराध बनगयाहो उसका विधिपूर्वक संशोधन करना चाहिये / और उसके बाद योगका निष्ठापन करना चाहिये / अर्थात् रात्रिमें जिस शुदोपयोगको ग्रहण किया था उसका उत्सर्ग कर देना चाहिये। इस विषयमें श्रीमान् गुणभद्र आचार्य ने भी कहा है कि:-- यमनियमनितान्तः शान्तबाह्यान्तरात्म, परिणमितसमाधिः सर्वसत्त्वानुकम्पी। विहितहितमिताशी क्लेशजालं समूलं, दहति निहतनिद्रो निश्चिताध्यात्मसारः // तथा इसी बात को श्रीमान् पूज्य रामसेनजीने भी कहा है कि: स्वध्यायाद् ध्यानमध्यास्ते ध्यानात्स्वाध्यायमामनेत् / ध्यानस्वाध्यायसंपत्त्या परमात्मा प्रकाशते / / यही बात स्वयं हमने भी सिद्धयङ्क महाकाव्यमें कही है / यथाः परमसमयसाराभ्याससानन्दसर्पसहजमहसि सायं स्वे स्वयं स्वं विवित्वा / अध्याय