________________
स्वाध्यायका प्रारम्भ दिन और रात्रिके पूर्वाह्न तथा अपराह्न के समय लघु श्रुतभक्ति और लघु आचार्य भक्तिका पाठ करके करना चाहिये । इस तरह विधिपूर्वक उसको नियत समयतक करके अंतमें लघु श्रुतमक्तिका पाठ करके उसकी समाप्ति करनी चाहिये ।
भावार्थ- स्वाध्यायके समय ४ माजे हैं। जिनमें दो दिन के और दो गत्रिके हैं. उनके नाम इस प्रकार हैं गौसर्गिक आपराह्नक प्रादोषिक वैगत्रिक । इन चारों ही समयों में साधुओंको आलस्य छोडकर स्वाध्याय करना उचित है। जैसा कि कहा भी है कि:
एकः प्रादोषिको गत्रौ द्वौ च गोसर्गिकस्तथा।
स्वाध्यायाः साधुभिः सर्वे कर्तव्याः सन्त्यतन्द्रितैः ॥ - स्वाध्यायका प्रारम्भ करते समय " अर्हद्वक्त्रप्रसूतम्" इत्यादि लघु श्रुतभक्तिका पाठ-अञ्चलिकामात्र । बोलकर और व्यवहारके अनुसार आचार्यादिकोंकी भी मति करके नियत समय में स्वाध्याय अवश्य करना चाहिये। आगममें स्वाध्यायके विषयमें बारह कायोत्सर्ग बताये हैं जिसका कि पहले वर्णन करचुके हैं। वन्दना आदिके विषयमें छह आदि कायोत्सर्ग हुआ करते हैं जिनका कि उल्लेख आगे चलकर तत्तत्प्रकरण में किया जायगा । ___ उपर्युक्त स्वाध्यायोंके प्रारम्भ और समाप्तिके कालकी इयत्ता-प्रमाण बताते हैं:
ग्राह्यः प्रगे द्विघटिकादूवं स प्राक्ततश्च मध्याह्ने ।
क्षम्योऽपराह्नपूर्वापररात्रेष्वपि दिगेषैव ॥ ३ ॥ प्रातःकालका स्वाध्याय सूर्योदयसे दो घडी दिन चढजानेपर शुरू करना चाहिये और मध्यान्हमें दो घडी काल बाकी रहे तभी समाप्त कर देना चाहिये। इसी तरह अपराह्न स्वाध्यायका प्रारम्भ साधओंको मध्यान्ह दो घडी काल बीत जानेपर शुरू करना चाहिये और सूर्यास्त के समयसे दो घडी पहले ही समाप्त कर देना चाहिये। पूर्वरात्रिक और अपर रात्रिक स्वाध्यायके विषयमें भी यही क्रम समझना चाहिये । अर्थात् पूर्वरात्रिक स्वाध्यायका
बध्याय