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वथास्थलके स्तनमागोंको उठाकर कायोत्सर्ग करना स्तनोन्नति नामका दोष है।
वायसो वायसस्येव तिर्यगीक्षा खलीनितम् ।
खलीनाश्विवदन्तघृष्टयोर्ध्वाधश्वलच्छिरः ॥ ११६ ॥ ११-कायोत्सर्ग करते समय तिरछी निगाहसे कौएकी तरह इधर उधर देखना वायस नामका दोष है।
१२-जिस प्रकार घोडा लगाम लगजानेपर दांतोको घिसता-कट कट शब्द करता हुआ शिरको ऊपर नचिको हिलाया करता है, उसी प्रकार दांतोंको घिसते हुए शिरको ऊपर नीचे करना खलीनित नामका दोष है।
ग्रीवां प्रसार्यावस्थान युगातगववद्युगः । मुष्टिं कपित्थवद्वद्ध्वा कपित्थः शीर्षकम्पनम् ॥ ११७ ॥ शिरःप्रकम्पितं संज्ञा मुखनासाविकारतः।
मूकवन्मूकिताख्यः स्यादङ्गुलीगणनाङ्गुली ॥ ११८ ।। १३-जिसके कंधेपर जूआ रक्खा हुआ है ऐसा बैल जिस प्रकार अपनी गर्दनको लम्बी कर दिया करता है उसी प्रकार श्रीवाको लम्बा करके कायोत्सर्ग करनेवाला यदि खडा हो तो युग नामका दोष है।
१४-कायोत्सर्गके लिये खडे होनेपर कैथकी तरह दोनो हाथोंकी मुही बांध लेना कपित्थ नामका दोष है। १५-कायोत्सर्गके समय शिर हिलाना शीर्षकम्पन नामा दोष है। १६-मुखनासिका आदिके विकार प्रकट करके गूंगे की तरह इशाग करना मुक्ति नामका दोष है। १७-अंगुलियोंके द्वारा गिनना अंगुली नामका दोष है।
भ्रूक्षेपो भूविकारः स्याद् घूर्णनं मदिरार्तवत् ।
अध्याय