________________
बनगार
शङ्का नामके अतीचारका स्वरूप बताते हैं:
विश्वं विश्वविदाज्ञयाभ्युपयतः शङ्कास्तमोहोदयाज, ज्ञानावृत्त्युदयान्मतिः प्रवचने दोलायिता संशयः। दृष्टिं निश्चयमाश्रितां मलिनयेत्सा नाहिरज्ज्वादिगा,
या मोहोदयसंशयात्तदरुचिः स्यात्सा तु संशीतिदृक् ॥ ७१ ॥ शुभ परिणामोंके द्वारा जिसकी अनुभाग शक्तिका निरोध हो चुका है ऐसे मोहोदय-सम्यक्त्वनामकी दर्शनमोहन य प्रकृतिके उदयका अस्त हो जानेसे सर्वज्ञदेवकी आज्ञा- शासनके अनुसार समस्त वस्तुओंके विस्तारका यथावत् विश्वास करनेवाले जीवको ज्ञानावरण कर्मके उदयसे प्रवचन - सर्वज्ञोक्त तत्त्वोंके विषयमें होनेवाली दोलायमान-वस्तुके सत्यांश और असत्यांश दोनो ही तरफको समानरूपसे झुकती हुई प्रतातिको संशय कहते हैं। इस संशयको ही शंका नामका अतीचार कहते हैं। क्योंकि इस तरहकी ही शंका-प्रवचनोक्त तत्त्वोंके वि.. षयमें जो शंका है वही निश्चय--वस्तुतत्वके यथार्थ प्रत्ययसे सम्बन्ध रखनेवाले सम्यग्दर्शनको मलिन करती है । सर्प रज्जु आदिके विषयमें जो शंका होती है वह उसको मलिन नहीं करती । यहां यह प्रश्न हो सकता है कि शंका नामके अतीचार और संशयमिथ्यात्व इनमें क्या अन्तर है ? इसका उत्तर यह है कि जिस शंकासे सम्यग्दर्शन मलिन हो-अंशतः खण्डित हो उसको शंका अतीचार कहते हैं और जो शंका मोहनीय कर्मके उदयसे उत्पन्न हो और जिससे प्रवचनोक्त तत्वोंमें अश्रद्धा हो जाय उसको संघयमिथ्यात्व कहते हैं।
... 'भावार्थ-प्रवचनोक्त तत्वोंके विषयमें सत्यता और असत्यताके संशयको शंका कहते हैं जो कि सम्यग्दर्शनका एक अतीचार है।
अध्याय