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स्यात्पाणिपिण्डपतनं पाणिजन्तुवधः करे । स्वयमेत्य मृते जीवे मांसमद्यादिदर्शने ॥ ५ ॥ मांसादिर्शनं देवाद्युपसर्गे तदाहयः । पादान्तरेण पंचाक्षगमे तन्नामकोऽश्नतः ॥५१॥
अनगार
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यदि भोजन करते हुए माधुके हाथपरसे काक गृद्ध आदि कोई भी जानवर भोज्य द्रव्यका हरण करले तो काकादिपिण्डहरण नामका अन्तरस्य होता है। यदि भोजन करते हुए साधुके हाथसे ग्रास गिरजाय तो पाणिपिण्डपतन नामका अन्तराय होता है। यदि भोजन करते हुए साधुके हाथपर कोई जीव आकर विना किसीके प्रयोगके ही मरजाय तो पाणिजन्तुवध नामका अन्तराय होता है। भोजन करते हुए मांस मद्य आदि दीखजाय तो साधुको मांसादिदर्शन नामका अन्तराय होता है । इसी प्रकार--भोजन करते समय देव मनुष्य या तिर्यश्च इनमें से किसीके भी द्वारा यदि उत्पात हो तो देवाद्युपसर्ग नामका अन्तराय होता है। और चलते समय यदि चरणों के अन्तरालमें पञ्चन्द्रिय जीव आजाय तो पादान्तरपंचेन्द्रियागमन नामका अन्तराय होता है। भाजनसंपात और उच्चार नामक दो अन्तरायों का स्वरूप बताते हैं:
भूमौ भाजनसंपाते परिवेषिकहस्ततः । तदाख्यो विघ्न उच्चारो विष्टायाः स्वस्य निर्गमे ॥ ५२ ॥
अध्याय
__संयमीके हस्तपुटपर जलादि सामग्रीका प्रक्षेपण करनेवालेके हाथसे कोई भी पात्र भूमिपर गिरजाय तो भाजनसंपात नामका अन्तराय होता है और यदि स्वयं संयमीके गुदद्वारसे मल-विष्टा निकल जाय तो उच्चार नामका अन्तराय होता है।