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अनगार
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प्रस्रवण और अभोज्यगृहप्रवेश इन दो अन्तरायोका स्वरूप बतात हैं:
मूत्राख्यो मूत्रशुक्रादे श्वाण्डालादिनिकेतने ।'
प्रवेशो भ्रमतो भिक्षोरभोज्यगृहवेशनम् ॥५३ ।। . यदि संयमीके मूत्र शुक अश्मरी आदि निकलजाय तो मूत्रनामका अन्तराय होता है । और मिक्षाकेलिये पर्यटन करते हुए यदि चाण्डाल आदि अस्पृश्य जीवोंके गृहमें प्रवेश होजाय तो उस संयमीके अमोज्यगृहप्रवेश नामका अंतराय माना है। पतन उपवेशन और संदंश इन तीन अन्तरार्योका स्वरूप बताते हैं:
भूमौ मूर्छादिना पाते पतनाख्यो निषद्यया।
उपवेशनसंज्ञोसौ संदंशः श्वादिदंशने ॥ ५४॥ यदि स्वयं संयमी मूी भ्रम क्लम श्रम आदिके द्वारा भूमिपर गिरजाय तो पतन नामका अन्तराय होता है और किसी कारणसे भूमिपर बैठना उपवेशन नामका अन्तराय है । कुत्ता तथा बिल्ली आदिके द्वारा काटे जानेपर संदंश नामका अन्तराय होता है।
भूमिस्पर्श निष्ठीवन उदरक्रिमिनिर्गमन और अदत्तग्रहण इन चार अन्तरायोंका स्वरूप दो श्लोकोंमें बताते है:
भूस्पर्श: पाणिना भूमेः स्पर्शे निष्ठीवनाव्हयः । स्वेन क्षेपे कफादेः स्यादुदरक्रिमिनिर्गमः ॥ ५५ ॥ उभयद्वारतः कुक्षिक्रिमिनिर्गमने सति । स्वयमेव गृहेऽन्नादेरदत्तग्रहणाव्हयः ॥ ५ ॥
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अध्याय