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बबमार
गुरोर्वचोनुभाष्यं चेच्छुद्धं स्वरपदादिना ।
प्रत्याख्यानं तथाभूतमनुवादामलं भवेत् ॥ . अर्थात गुरुके वचनका अनुवाद करना हो तो स्वरपद आदिकी अपेक्षा शुद्ध ही करना चाहिये । ऐसा करनेसे जो प्रत्याख्यान हुआ करता है उसको अनुवादामल कहते हैं।
गुरुकी आज्ञानुसार यथावत् आचरण करनेको, श्रम आतंक उपसर्ग दुर्मिक्ष आदिके निमित्तसे अथवा बन उपवन आदिमें रहकर भी आज्ञानुकूल आचरणका भंग न करने को अनुपालन कहते हैं. ऐसा करनेसे मी प्रत्याख्यान की शुद्धि हुआ करती है । अतएव भव्योंको इसका भी पालन करना चाहिये । जैसा कि कहा भी है कि:
श्रमातंकोपसर्गेषु दुर्भिक्षे काननेपि वा।
प्रपालितं न यद्भग्नमनुपालनयाऽमलम् । इसी प्रकार प्रत्याख्यानकी चौथी शुद्धि भावोंकी अपेक्षासे बताई है। भाव नाम परिणामोंका है । जो प्रत्याख्यान रागद्वेषादिरूप अन्तरंग परिणामोंसे दुषित नहीं होता उसको भावशुद्ध कहते हैं । यथाः
रागद्वेषद्वयेनान्तर्यद्भवेन्नैव दूषितम् ।
विज्ञेयं भावशुद्धं तत् प्रत्याख्यानं जिनागमे ॥ शरीर और इन्द्रियादिके निमित्तसे जो अशुभ कर्भका संचय हुआ करता है उसके दूर करनेको, अथवा वह जिन उपवासादि उपायोंसे दूर किया जाता है उनको भी प्रत्याख्यान कहते हैं । उपाय: अनेक हैं अत एव इस प्रत्याख्यानके भी अनेक मेद हैं। किंतु इसका पालन करना आवश्यक है । इसलिये मुमुक्षुओंको अपनी २ शक्तिके अनुसार और आगमके अनुकूल इसका पालन अवश्य ही करना चाहिये ।
इस प्रकार पडावश्यकों में से प्रत्याख्यान नामके पांचवें भेदका व्याख्यान करके अब क्रमानुसार छहे भेद कायोत्सर्गका सात पद्योंमें वर्णन करना चाहते हैं। उसमें सबसे पहले कायोत्सर्गका स्वरूप क्या है ? उसका
बभाय