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अनगार
आज्ञाज्ञापनयोदक्ष आदिमध्यावपानतः । साकारमनाकारं च सुसंतोषोनुपालयन ॥
प्रत्याख्याता भवेदेष प्रत्याख्यानं तु वजनम् ।
___ उपयोगि तथाहारः प्रत्याख्येय तदुच्यते ॥ इसके मिवाय मुमुक्षपोंको अपनी अपनी शक्ति के अनुसार अर्थात शक्तिको न तो छिपाकरके और न उसका उल्लंघन ही करके अनेक प्रकारसे उपवासादि करके अवश्य ही प्रत्याख्यान कान का उपदेश देते हैं:
अनागतादिदशाभद विनयादिचतुष्कयुक ।
क्षपणं मोक्षुणा कार्य यथाशक्ति यथागमम् ॥६९ ॥ . अपने बल और वीर्यका तथा आगमका अतिक्रमण न करके मुमुक्षुओंको विनयादिक चार प्रकारका और | अनागतादिक दश प्रकारका प्रत्याख्यान करना चाहिये । आगममें प्रत्याख्यानके जो अनागतादिक दश भेद गिनाये है वे इस प्रकार है:
अनागतमतिक्रान्तं कोटीयुतमखण्डितम् । साकारं च निराकार परिमाणं तथेतरत् ॥ नवमं वतनीयात दशम स्यात सहेतुकम् ।
प्रत्याख्यानविकल्पोयमेव सूत्रे निरुच्यते ॥ जिन उपवासादिकोंको चतुर्दशी आदि तिथियों में करना चाहिये उनको उन तिथियों में न करके उनके पहले ही त्रयोदशी आदि तिथियों में यदि किया जाय तो उनको अनागत कहते हैं। और उस दिन न करके यदि उसके अनन्तर अमावस्या पूर्णिमा या प्रतिपदा आदि तिथियों में किया जाय तो उनको अतिक्रान्त कहते हैं । कल स्वाध्यायका समय बीत जानेपर यदि शक्ति होगी तो उपवास करूंगा नहीं तो नहीं करूंगा, ऐसा संकल्प करके जो उपवास किया जाता है उसको कोटीयुत कहते हैं। जिस पाक्षिकादिक अवसर पर अवश्य ही उपवास करना
पुयाय