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नगर
की ८० धनुष, वासुपूज्यस्वामीकी ७० धनुष, विमलनाथकी ६० धनुष, अनन्तनाथकी १० धनुष, धर्मनाथकी ४५ धनुष, शान्तिनाथकी ४० धनुष, कुन्थुनाथकी ३५ धनुष, अरहनाथकी ३० धनुष, मल्लिनाथकी २५ धनुष, मुनिसुव्रतनाथकी २० धनुष, नमिनाथकी १५ धनुष, नेमिनाथ की १० धनुष, पार्श्वनाथकी ९ हाथ, और वर्धमान स्वामीकी काय ७ हाथ है। इसप्रकार कायप्रमाणके धारण करनेवाले जिन भगवान्को मैं नमस्कार करता हूं। के मातापिता आदिमेंसे माताओंके द्वारा भगवान् का स्तवन करना, जैसे कि:
वंशः क्षायिकदृक् समिद्धसुधियां योस्मिन्मनूनामभूद्, . ये चेक्ष्वाकुकुरूपनाथहरियुग्वंशाः पुरा वेधसा । आधानादिविधिप्रबन्धमहिताः सृष्टास्तदुत्त्थार्यभू,
भर्तृस्वामिकजीविताः सुकुळजा जैन्यो जयन्यम्बिकाः॥. ..... क्षायिक सम्यग्दर्शन के धारण करनेवाले और उत्कृष्ट समीचीन ज्ञानके धारक कुलकरोंके वंशम अथवा जिन वंशॉकी पूर्व कालमें आदि ब्रह्मा-आदीश्वर भगवान्के द्वारा स्थापना हुई और उन्हींके द्वारा जिनमें गर्भाधानादि संस्कार क्रियाओंके द्वारा महनीयता प्राप्त हो चुकी हे ऐसे इक्ष्वाकु कुरु उग्र नाथ हरि आदि वंशों से किसी भी उत्पन्न होनेवाले तथा इस आर्यभृमिक मत्तो-महान् सम्राट् जिनके स्वामी हैं। अर्थात जो ऐसे उत्कृष्ट कुलीन राजाओंकी प्राणवल्लमाएं हैं और जो स्वयं भी ऐसे ही उत्तम कुलोंमें उत्पन्न हुई हैं ऐसी जिनेन्द्रदेवकी माताएं सदा जयवंती रहो।
उपर्युक्त श्लोकमें जनक शब्दके साथ आदि शब्द जो दिया है उससे माताके स्वप्न शरीरकी कान्ति दिव्यध्वनि विभूति और दीक्षा बृक्षादिके द्वारा किये गये भगवान्के कीर्तनको भी द्रव्यस्तव कहते हैं । इनमेंसे स्वमोंके द्वारा जैसे कि:
मात्रा तीर्थङ्कराणां, परिचरणपरश्रीप्रभृत्योद्भवादिश्रीसंमेदाप्रदूता रजनिविरमणे स्वप्नभाजेक्षिता ये। श्रीभोलेभारिमास्रक्शशिरविझषकुम्भाब्जपण्डाधिपीठ
अध्याय
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