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अनगार
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अध्याय
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असंयमी - माता पिता, और दीक्षागुरु तथा शिक्षागुरु, एवं राजा और मंत्री आदि, तथा तापसादिक और पाइस्थादिक, इसी प्रकार रुद्रादिक और शासन देवतादिक, तथा शास्त्रोपदेश के अधिकारी श्रावककी भी संय मियाँको वन्दना न करनी चाहिये । इतना ही नहीं बल्कि यथोक्त संयमका पूर्णतया पालन करनेवाले श्रावकों को भी इन असंयमियोंकी वन्दना न करनी चाहिये ।
संयम साधुओंकी भी वन्दना करने की विधिका नियम बताते हैं कि कब और किस तरहसे उनकी वन्दना करनी चाहिये, और कब नहीं करनी चाहिये:--
वन्द्यो यतोप्यनुज्ञाप्य काले साध्वासितो न तु । व्याक्षेपाहार नीहारप्रमादवि मुखत्वयुक् ॥ ५३ ॥
संयमीको संयमीकी भी वन्दना योग्य समयमें - आगममें जो वन्दना करनेका समय बताया है उसी समयमें करनी चाहिये । इसके सिवाय जब कि वे अपने स्थानपर या आसनादिपर बैठे हों या बैठ चुके हों नब और उनकी मंजूरी लेकर ही वन्दना करनी चाहिये । अर्थात् वन्दना करने के पहले " हे भगवन् ! वन्देऽहंहे भगवन् मैं आपकी वन्दना करता हूं, " इस तरहसे उनके समक्ष विज्ञप्ति करनी चाहिये । और जब वे इसके बदले में 46 99 66 वन्दस्व वन्दना करो " यह अनुज्ञा करें तब उनकी वन्दना करनी चाहिये । जैसे कि कहा मी है कि-
आसने ह्यासनस्थं च शान्तचित्तमुपस्थितम् । अनुज्ञाप्यैव मेधावी कृतिकर्म निवर्तयेत् ॥
उपस्थित संयम जब कि भले प्रकार आसन पर बैठे हुए हो कर भी शांतचित हों तब उनकी मंजूरी लेकर ही विवेकी साधुओंको उनका विनय आदि करना चाहिये ।
जिस समय वै वन्दनीय साधु किसी प्रकार व्याकुल हो अथवा भोजन कर रहे हों, यद्वा मल मूत्रादिका
धर्म •
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