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अनगार
"मनसे वचनसे या शरीरसे मेंने जिस किसी दुष्कर्मका संचय किया हो, अथवा किसीसे कराया हो, यद्वा किसी करनेपर उसकी अनुमोदना की हो, तो वह सब मेरा दुष्कर्म मिथ्या हो जाय ।" इस वाक्यमें एक भूतकालकी ही क्रिया लगाई है। किन्तु इसी प्रकारसे मनदचनकायके संयोगी असंयोगी भेद और उनचास क्रियापदोंको क्रमसे जोडकर प्रतिक्रमण करना चाहिये । जैसा कि कहा भी कि:
कृतकारितानुमननत्रिकालविषयं मनोवचःकायैः।
परिहृत्य कर्म सर्व परमं नैष्कर्म्यमवलम्बे ॥ . भूत भविष्यत् और वर्तमान कालमें मन वचन और कायके द्वारा तथा कृत कारित और अनुमोदना करके जिन जिन काका संग्रह हुआ हो या हो रहा है उन सबको छोडकर अब में कर्मरहित उत्कृष्ट अवस्थाका अनुभव कर रहा हूं। तथा और भी कहा है कि:
मोहायदहमकार्ष समस्तमपि कर्म तत्प्रतिक्रम्य ।
आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ॥ मोहकै निमित्तसे मने जिन जिन कमीको संचित किया उन सभीको छोडकर-उनका प्रतिक्रमण करके देखता हूं तो कर्म रहित चैतन्यस्वरूप अपनी आत्मामें मैं अपने आत्मस्वरूपसे ही सदा लीन होकर रह रहा हूं।
पूर्व कालमें संचित कर्मोंके फलका प्रति क्रमण करने के लिये किस प्रकारकी भावना होनी चाहिये सो ऊपर बताया है। उसी प्रकार वर्तमानमें उदयमें आते हुए काँका और उनके फलका आलोचन इस तरह करना चाहिये कि “ मैं अपने मन वचन या शरीरके द्वारा न तो दुष्कर्म करता हूं, और न किसी से कराता हूं, और न कोई वैसा करता हो तो उसकी अनुमोदना करता हूं।" किंतु पहलेकी तरह यहांपर भी मन वचन कापके संयोगी असंयोगी भंग और उनचास क्रिया पदोंको क्रमसे लगालेना चाहिये। इस प्रकार कर्म और उनके फलोंका आलोचन करके अपने आत्मस्वरूपमें लीन होना चाहिये । जैसा कि कहा भी है कि:
मोहविलासविजृम्भितमिदमुद्यत् कर्म सकलमालोच्य । आत्मनि चैतन्यात्मनि निष्कर्मणि नित्यमात्मना वर्ते ॥
पध्याय