________________
बनगार
s८०
-
प्रतिक्रमणमाला
नहीं माना है। इसी प्रकार और भी अनेक स्थानोमें शिथिल उच्चारण मिलता है। तदनुसार यहाँपर भी समझ ना चाहिये । अत एव छन्दोभङ्गकी शंका ठीक नहीं है। · सम्पूर्ण कर्मोसे रहित होने की भावना करते हुए उनके फलोंसे भी रहित होनेकी भावना करनेमें मुमुक्षु ओंको प्रेरित करते हैं । -
प्रतिक्रमणमालोचं प्रत्याख्यानं च कर्मणाम् ।
. भृतसद्भाविनां कृत्वा तत्फलं व्युत्सृजेत सुधीः ॥ ६४ ॥ विवेकी साधुओंको भूत भविष्यत् और वर्तमान समस्त कर्मों का प्रतिक्रमण आलोचन और प्रत्याख्यान करके उनके सम्पूर्ण फलोंका भी प्रत्याख्यान करना चाहिये ।
भावार्थ:-मुमुक्षुओंको भूत वर्तमान और भविष्यत कोका क्रमसे प्रतिक्रमण आलोचन और प्रत्याख्यान करना चाहिये । तथा उसी प्रकार कोंके फलोंका मी क्रमसे प्रतिक्रमण आदि करना चाहिये । जिन शुभ या अशुभ कर्मोंका पूर्व कालमें संचय हो चुका है उन कर्मोंके उदयसे उत्पन्न होने वाले परिणामोंसे अपनी आत्माको जुदा रखना, संचित कमोंके उदयकेलिये निमित्त मिलनेपर उस निमित्तको उदयका निमित्त न बनने देना, यदि कर्मोंका उदय हो भी जाय तो उससे अपनी आत्माको पृथक रखना, क्रोधादिरूप परिणत न होना, और कमोके संग्रह तथा उदय आदिमें करणभूत पूर्व काकी आत्मासे निवृत्ति करना, इसको भूत कमोंका प्रतिक्रमण कहते हैं । वर्तमानमें जिन शुभ या अशुभ काँका उदय हो रहा है उनसे अपनी आत्माको सर्वथा मित्र समझना, इसको वर्तमान या सत्कर्मोंका आलोचन करना कहते हैं । जिनते कि आमामी काँका बन्ध हो सकता है ऐसे अपने शुभ या अशुम परिणाम न होने देना इसको भाविकमाका प्रत्याख्यान कहते हैं। इस प्रकार भृत वर्तमान और भविष्यत् कर्मोंका प्रतिक्रमणादिक क्रमसे करके उनके फलोंका भी परित्याग करनेके लिये इस प्रकार विचार करना चाहिये । यथा: