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अनगार
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हुआ करता है, और चौथा वह जो कि भयके निमित्त से करना पड़ता है, एवं पांचवां वह जो कि मोक्षको सिद्ध करने के उद्देश्यसे किया जाता है । इसीलिये उनके ये पांच अन्वर्थ नाम हैं।- लोकानुवर्तनाहेतुक, कामहेतुक, अर्थहेतुक, भयहेतुक, और मोक्षहेतुक । ।
अतिथिके समक्ष खडे होना, हाथ जोडना और उनकी पूजा करना, तथा उनको ऊंचा आसन देना आदि, और देवपूजा करना आदि भी लोकानुवर्तनाहेतुक विनय माना गया है । धनके उद्देश्यसे भाषाका स्वतन्त्र अनुवर्तन करना, देश और कालका विनियोग करना, तथा लोकोंका अनुवर्तन करना और हाथ जोडना आदि अहेतुक विनय है । इसी प्रकार काम और भयके विषय में भी विनय कर्म हुआ करता है। पांचवां मोक्षविनय है जिसका कि इस प्रकरणमें निरूपण किया गया है । यह मोक्षविनय मी दर्शनविनय आदिके मेदसे पांच प्रकारका है, जैसा कि पहले लिखा जा चुका है। नामादिनिक्षेपके भेदसे वन्दनाके छह भेदोंका उल्लेख करते हैं:
नामोच्चारणमर्चाङ्गकल्याणावन्यनेहसाम् ।
गुणस्य च स्तवाश्चैकगुरोर्नामादिवन्दना ॥ ४९ ॥ । वन्दनाके नामादि निक्षेपोंकी अपेक्षासे छह भेद हैं । नाम वन्दना, स्थापनावन्दना, द्रव्यवन्दना, कालवन्दना, क्षेत्रवन्दना, और भाववन्दना । अर्हतादिकामसे किसी भी एक पूज्य पुरुष नामका उच्चारण करनको अथवा स्तुति आदि करनेको नामवंदना कहते हैं। जिनप्रतिमाकी स्तुति करनेको स्थापना वन्दना कहते हैं । भगवान् के शरीरका स्तवन करना इसको द्रव्यवन्दना करते हैं । पंच कल्यागकों में किसी भी कल्याणकके कालकी स्तुति करना इसको कालवन्दना कहते हैं। जहां पर भगवान् का कोई भी कल्याण हुआ हो उस स्थानकी स्तुति करनेको क्षेत्रवन्दना कहते हैं । और भगवान्के गुणोंका स्तवन करना इसको भाववन्दना कहते हैं।
अहंतादिकोंके सिवाय और भी जो वन्द्य पुरुष हैं उनको बताते हुए इस बात का निर्देश करते हैं कि व. न्दना करनेवाला साधु कैसा होना चाहिये, अथवा उसको किस तरह वन्दना करनी चाहिये ।
अध्याय