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बनगार
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बच्चाय
यतिक षडावश्यकों से सामायिक चतुर्विंशतिस्तव और वन्दना इन तीन आवश्यकों का वर्णन किया । अब इनका व्यवहार के अनुसार प्रयोग किस तरह करना चाहिये उसकी विधि बताते हैं:
सामायिकं णमो अरिहंताणमिति प्रभृत्यथ स्तवनम् ।
थोरसामीत्यादि जयति भगवानित्यादिवन्दनां युंज्यात् ॥ ५६ ॥
संयम साधुओंको तथा देश संयमी श्रावकों को भी णमो अरहंताणं आदि सामायिक दण्डक बा हुए पाठके अनुसार सामायिक, और थोस्सामि इत्यादि पाठके अनुसार चतुर्विंशतिस्तव, तथा जयति भगवान् इत्यादि उल्लेखके अनुसार वन्दना करनी चाहिये ।
इस श्लोक में एक आदि शब्दका लुप्त निर्देश है । अत एव इस वन्दना प्रकरणमें अरहंत वन्दना सिद्ध वन्दना आदिका भी संग्रह समझलेना चाहिये ।
क्रमानुसार प्रतिक्रमण के लक्षण और भेद बताते हैं: -
अहर्निशा पक्षचतुर्मासान्दर्योत्तमार्थभूः ।
प्रतिक्रमस्त्रिधा ध्वंसो नामाद्यालम्बनागसः॥ ५७ ॥
नाम स्थापना और द्रव्य आदिक छह प्रकार के आश्रय से उत्पन्न हुए अपराध अथवा संचित हुए पापके आत्मासे दूर करनेको प्रतिक्रमण कहते हैं । यह तीन प्रकारसे हुआ करता है, मन वचन और कायके द्वारा, अथवा ga area और अनुमोदनाकी अपेक्षासे । यद्वा मन वचन और कायके द्वारा की गई निन्दा गर्दा और आलोचनाको भी तीन प्रकारका प्रतिक्रमण कहते हैं। जैसा कि कहा भी है कि:
विनिन्दना लोचनगणैरहं, मनोवच: कायकषाय निर्मितम् ।
निहन्मि पापं भवदुःखकारणं, भिषग्विषं मन्त्रगुणैरिवाखिलम् ॥
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धर्म
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