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सर
बनगार |
द्योयानाशीविषाकोवसुचयशिखिनः सन्तु ते मङ्गलं नः ॥ जिनकी परिचर्या में लक्ष्मी आदि देवियां रहा करती हैं ऐसी तीर्थकरोकी माताओंके द्वारा रात्रिके अंतिम प्रहरमें देखे गये, और जो कि पुरश्चारी इतके समान भगवान्के गर्भादिक निर्वाण पर्यन्त पांचो कल्याणों को पहलेसे ही सूचित करने वाले है, ऐसे सोलह स्वम अर्थात् ऐरावतके समान श्वेत हाथी, उत्कृष्ट बैल, सिंह, लक्ष्मी, दोमालाएं चद्रमा, सूर्य, मीनयुगल, दो कलश, कमल बन, सरोवर, सिंहासन, देदविमान, नागमन्दिर, रत्नराशि, और निधूम आग्न, तुमको सदा मंगल कारी हों। इसी प्रकार कान्ति दिव्यधनि आदिके द्वारा भी समझना चाहिये । जैसे कि:
कान्त्येव नपयंति ये दश दिशो धाम्ना निरुन्धन्ति ये धामोदाममहस्विनां जनमनो मुगन्ति रूपेण ये । दिव्येन ध्वनिना सुख श्रवणयोः साक्षात्क्षरन्तोमृतं वन्द्यास्तेष्टसहस्रलक्षणधरास्तीर्थेश्वराः सूरयः ॥ येभ्यर्चिता मुकुटकुण्डलहाररत्नैः शक्रादिभिः सुरगणः स्तुतपादपद्माः ।
ते मे जिनाः प्रवरवंशजगत्प्रदीपास्तीर्थङ्कराः सततशान्तिकरा भवन्तु । जो अपनी अद्भुत कांति के द्वारा ऐसे मालुम पड़ते हैं मानो ये उसके द्वारा दशों दिशाओंका अभिषेक ही कर रहे हैं, और जो अपने तेजके द्वारा महान् तेजस्वियोंके भी तेजको दवा देते हैं, जो अपने अद्भुतरूप के द्वारा समस्त लोगोंके मनका हरण करनेवाले हैं, और जो अपनी दिव्य वाणीके द्वारा लोगोंके कानों में मानों साक्षात सुखकर अमृत ही चुआ देते हैं, ऐसे १००८ लक्षणोंके धारक धर्म तीथके प्रवर्तक भगवान्की ही तुम सब लोगोंको बन्दना करनी चाहिये । मुकुट कुंडल हार और रत्नमय भूपोंसे भूषित इन्द्र तथा देवगण जिनकी पूजा किया करते हैं, और जिनके चरण कमलोंकी स्तुति किया करते हैं, ऐसे सर्वोत्कृष्ट वंशोंमें उत्पन्न होनेवाले और जो जगतbahan शताarपी अंधकार दा करनेकेलिये उत्कृष्ट दीपकके समान हैं, वे तीर्थकर भगवान हमारे लिये शान्तिके कारण हों।
अध्याय
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