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बजगार
धर्म
तद्गर्भावतराद्युद्घक्रियादृप्तस्य कर्तिनम् ॥ ४३ ॥ मगवान के गर्भ जन्म तप ज्ञान और निर्वाण कल्याणकोंकी प्रशस्त क्रियाओंसे जो महत्ताको प्राप्त हो चुका है ऐसे समयका वर्णन करनेको कालस्तव कहते हैं। अर्थात तीर्थकरोंके पांचो कल्याणक सम्बन्धी समयोंके महत्वके वर्णन करनेका नाम कालस्तव है। मावस्तवका स्वरूप बताते हैं
वर्ण्यन्तेनन्यसामान्या यत्कैवल्यादयो गुणाः ।
भावकैर्भावसर्ववदिशा भावस्तवोस्तु सः॥ १४ ॥ जीवाजीवादिक सात तच अथवा नौ पदार्थोंको भाव कहते हैं। इन भावोंके सर्वस्व-द्रव्य मुण पर्यायरूप संपत्तिका यथावत् वर्णन करनेवाले अन्त भगवान्के असाधारण-जो अन्य किसी भी देवादिकमें नहीं पाये जाते ऐसे अनन्तज्ञान अनन्तदर्शन प्रभृति गुणोंके भव्योंद्वारा किये गये वर्णनको मावस्तव कहते हैं। जैसे कि
विवतः स्वैर्द्रव्यं प्रतिसमयमुद्यव्ययदपि, स्वरूपादुल्लोलैर्जलमिव मनागप्यविचलत् । अनेहोमाहाल्याहितनवनवीभावमखिलं,
प्रभिन्वानाः स्पष्टं युगपदिह नः पान्तु जिनपाः ॥ . जिस प्रकार जलमें प्रतिक्षण कलोलें उठती रहती और विलीन भी होती रहती हैं तो भी वह स्वरूपतः निश्चल ही रहता है। इसी प्रकार द्रव्यों में भी प्रति समय अनेक पर्यायें उत्पन्न होती और नष्ट भी होती रहती हैं फिर भी वे द्रव्य अपने स्वरूपकी अपेक्षा रंचमात्र भी चलायमान नहीं होते-सदा एकस्वरूप-नित्य ही रहते हैं । इस प्रकार कालके माहात्म्य से जिसमें प्रतिक्षण उत्तरोत्तर नवीनता प्राप्त होती रहती है ऐसे सम्पूर्ण जगतको युगपत् साक्षात् देखनेवाले जिनभगवान हमारी रक्षा करो।
बध्याय
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