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अनगार
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- ग्रन्थ अर्थ अथवा दोनों के विषयमें “यह इसी तरहसे है या दूसरी तरहसे" ऐसा संशय होनेपर उसको दूर करनेकेलिये अथवा निश्चित मालुम होनेपर मी कि यह इसी तरहसे है या ऐसा नहीं है अपने निश्चयको द्रढ बनाने के लिये विशेष विद्वान्से उस विषय में प्रश्न करना इसको प्रच्छना स्वाध्याय कहते हैं।
यहाँपर यह शंका हो सकती है कि प्रश्न करना अध्ययन नहीं कहा जा सकता, अत एव इस स्वाध्यायके लक्षणमें अव्याप्ति दोष आता है। किंतु यह शंका ठीक नहीं है, क्योंकि प्रश्न करना अध्ययनमें प्रवृत्ति होनेका निमित्त है, अत एन उसको भी स्वाध्याय कह सकते हैं।
. मुख्य विषयमें ही किये गये प्रश्नको स्वाध्याय कह सकते हैं वह बताकर इस शंकाका प्रकारान्तरसे समाधान करते हैं:
किमेतदेवं पाठ्यं किमेषोर्थोस्योति संशये।
निश्चितं वा द्रढयितुं पृच्छन् पठति नो न वा ॥ ८५॥ हे भगवन् ! यह अक्षर पद या वाक्य इसी तरहसे होना चाहिये या दूसरी तरहसे ! यद्वा इसका उच्चारण किस प्रकार करना चाहिये ? इत्यादि शब्द के विषय में जो अपने संदेहको प्रकट करता है, तथा इस पद वाक्य या श्लोकका क्या अर्थ होना चाहिये ? अभी जो अर्थ कहा गया वही होना चाहिये या और कुछ ! इत्यादि अर्थ के विपयमें जो प्रश्न करता है, अथवा मेंने जो यह समझा है सो ठीक है या नहीं ? इत्यादि शब्द या अर्थ के विषयों प्रश्न करनेवाला साधु क्या अध्ययन नहीं करता ? अवश्य करता है।
भावार्थ-शब्द या अर्थका निश्चय करने के लिये अथवा निश्चयको भी दृढ करनेकेलिये जो प्रश्न किया जाता है वह भी स्वाध्याय में ही सम्मिलित है।
अनुपेक्षा नामक स्वाध्यायके तीसरे भेदका निरूपण करते हैं
सानुप्रेक्षा यदभ्यासोऽधिगतार्थस्य चेतसा । स्वाध्यायलक्ष्म पाठोन्तर्जल्पात्मात्रापि विद्यते ॥८६॥ .
अध्याय