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अनगार
यहाँपर क्रोधादिकमें आदि शब्द व्यवस्थावाची है । अत एव इससे जीवकी परतन्त्रताके निमित्तभूत राग द्वेष मोह और वादर सूक्ष्म योग तथा अघाति कमांक तीव्र और मन्द उदयके कालविशेषका भी ग्रहण कर लेना चाहिये। ___ भावार्थ- इन सम्पूर्ण आस्रवोंका निरोध और उसके साथ साथ भेद ज्ञान होनेसे ही मोक्ष कल्याण और अनन्तसुखकी सिद्धि होती है। जैसा कि कहा भी है किः
भेदविज्ञानत: सिद्धाः सिद्धा ये किल केचन ।
अस्यैवाभावतो बद्धा बद्धा ये किल केचन ।। प्रकृत विषयका उपसंहार करते हुए इस बातका उपदेश देते हैं कि साधुओंको शुद्ध आत्मसंवेदनका लाम होजानेपर अधाक्रियाओं के पालन करने में भी प्रवृत्त होना चाहियेः
इतीदृग्भेदविज्ञानबलाच्छुडात्मसंविदम् ।
साक्षात्कर्मोच्छिदं यावल्लभे तावद्भजे क्रियाम् ॥ १३ ॥ जिसका कि स्वरूप ऊपर लिखा जा चुका है और जैसा कि आगममें बतलाया भी है उस भेद विज्ञानकी सामय से शुद्ध-सम्पूर्ण संकल्प विकल्पोंमे गहित आत्मसंवेदनको जो कि घाति और अघाति सभी कर्मीको निर्मूल करने के लिये साक्षात्कारण है प्राप्त करूं तबतक मुझे मम्यग्ज्ञानपूर्वक सभी आवश्यक क्रियाओंका पालन करना चाहिये।
भावार्थ-आत्माका भिन्नत्वेन अनुभवन करनेरूप ज्ञान क्रियाका पालन मुमुक्षुका प्रधान कर्तव्य है, किन्तु जबतक वह मुख्यतया सिद्ध न हो तबतक उसकी साधनभूत अथवा अङ्गरूप अधस्तन क्रियाओंको भी पालना चाहिये ।
यहाँपर यह शंका हो सकती है कि जब मुमुक्षुका कर्तव्य निर्विकल्प आत्माका अनुभव करना है जिससे
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