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अनगार
धर्म
अरिहंति बंदणणमंसणाणि अरिहंति पूयसकारं ।
अरिहंति सिद्धिगमणं अरिहंता तेण वुचंति ।। जो सम्पूर्ण द्रव्यों तथा उनकी समस्त पर्यायोंका हस्तामलकवत् साक्षात् अवलोकन करने वाले हैं उनको केवली कहते हैं । अनेक पर्यायोंके द्वारा गहन संसारके विषम व्यसनों-दुःखों को प्राप्त करानेवाले कर्मोंको जिन्होने जीत लिया है उनको जिन कहते हैं । जो अपने सर्वोत्कृष्ट ज्ञान भावके द्वारा सम्पूर्ण लोकको प्रकाशित करनेवाले--- जाननेवाले हैं उनको लोकोद्योतक कहते हैं। जिन्होने धर्म-वस्तुओंके यथार्थ स्वरूपका अथवा उत्तमक्षमादिकका तीर्थ --उपदेश किया है उनको धर्मतीर्थकृत् कहते है।
लोक नौ प्रकारका माना है ! यथाः___णामं ठवणं दव्वं खेत्तं चिण्हं कसाय लोओ य ।
भवलोगभावलोगं पजयलोगो य णादव्वो ॥ अर्थात् - नामलोक स्थापनालोक द्रव्यलोक क्षेत्रलोक चिन्हलोक कषायलोक भवलोक भावलोक और पर्यायलोक ।
संसारमें जितने पदार्थ हैं उनकी और उनकी पर्यायोंकी शुभाशुभ संज्ञाओंको नामलोक कहते हैं। सम्पूर्ण कृत्रिम और अकृत्रिम पदार्थोंको स्थापनालोक कहते हैं। तथा छह द्रव्योंके विस्तारको द्रव्यलोक कहते हैं। यह परिणामादिकी अपेक्षासे अनेक प्रकार होता है । यथा -
परिणामि जीवमुत्तं सपदेसं एय खेत्त किरिया य ।
णिचं कारण कत्ता सव्वगदिदरसि यपएसो ॥ अवस्था या आकारके बदलनेको परिणाम या पर्याय कहते हैं। यह दो प्रकारका होता है, व्यंजन पर्याय और अर्थ पर्याय। व्यंजन पर्यायकी अपेक्षासे जीव और पुद्गल दो द्रव्य परिणामी हैं, शेष चार द्रव्य अपरिणामी हैं। क्योंकि जीवका चारो गतियों में भ्रमण होता है और लकडी पत्थर मट्टी आदि पुद्गलोंका परिणमन प्रत्यक्ष
अध्याय