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अनगार
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सामायिक चतुर्विंशतिस्तव वन्दना प्रतिक्रमण प्रत्याख्यान और कायोत्सर्ग । इस तरह आवश्यक कर्म छह प्रकारके होते हैं।
निक्षेपरहित व्याख्यान वक्ता और श्रोता दोनोंहीको उन्मार्गमें लेजानेवाला हो सकता है। अत एव सामायिकादि छहों आवश्यकोंको नामादि लहों निक्षेपोंपर घटित करके पालन करनेका उपदेश देते हैं:
नामस्थापनयोव्यक्षेत्रयोः कालभावयोः ।
पृथमिक्षिप्य विधिवत्साध्याः सामायिकादयः ॥ १८ ॥ आवश्यक नियुकिमें बताये हुए विधानके अनुसार नाम स्थापना द्रव्य क्षेत्र काल और भाव इन छह निक्षेपोंपर सामायिकादिको घटित करके आचार्योंको उनका व्याख्यान करना चाहिये और साधुओंको उनका पालन करना चाहिये।
इस तरह करनेसे सामायिक के छह मेद होते हैं। नाम सामायिक स्थापना सामायिक द्रव्य सामायिक क्षेत्र सामायिक काल सामायिक और भावसामायिक । इसी प्रकार चतुर्विशतिस्तवादिक भी विषयमें समझना चाहिये । प्रत्येक आवश्यकपर छहों निक्षेप लगते हैं, अत एव आवश्यकोंके कुल भेद छत्तीस होते हैं।
__सामायिकका निरुक्तिपूर्वक लक्षण बताते हैं:रागाद्यबाधबोध: स्यात् समायोस्मिन्निरुच्यते ।
भवं सामायिकं साम्यं नामादौ सत्य सत्यपि ॥ १९ ॥ . सम-रागद्वेषादिसे आक्रांत न होनेवाले अय-ज्ञानको समाय कहते हैं। इस तरह के ज्ञानमें अनुभवन रूप जो प्रवृत्ति होती है उसको ही सामायिक कहते हैं । सामायिकका ही मग नाम साम्य भी है। प्रशस्त और अप्रशस्त नाम स्थापना आदिके विषयमें क्रमसे रागद्वेष न करना इमीको साम्य कहते हैं।
वध्याय
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