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चनगार
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अध्याय
नोआगमद्रव्य सामायिक के तीन भेद हैं-ज्ञायकशरीर भावी और तद्रथतिरिरिक्त । सामायिकशास्त्र के जाननेवाले अनुपयुक्त शरीरको शाकशरीर कहते हैं। इसके भी तीन भेद हैं-भूत भविष्यत् और वर्तमान भूत भी तीन प्रकारका होता है - च्युतं व्यावित और त्यक्त । जो पके हुए फलकी तरह आयुके पूर्ण होनेपर स्वयं छूटजाय उसको ब्युत, और जो शस्त्रप्रहारविषमक्षण श्वासोच्छ्रास के निरोध आदि कारणोंसे छूटे उसको च्यावित, तथा समाधि द्वारा छोडे - हुएको त्यक्त कहते हैं । त्यक्तके भी तीन भेद हैं-भक्त प्रत्याख्यान इङ्गिनीमरण प्रायोपगमन । भक्त प्रत्याख्यान मी तीन तरहका है - उत्कृष्ट मध्यम जघन्य । उत्कृष्ट बारह वर्षका, जघन्य अन्तर्मुहूर्तका, और जिसका इन दोनों के मध्यका काल हो उसको मध्यम कहते हैं। जो आगे चलकर सामायिक शास्त्रका ज्ञाननेवाला होगा उसको भावीनो आगमद्रव्य सामायिक कहते हैं । तद्वयतिरिक्त के दो भेद हैं- एक कर्म दूसरा नो कर्म । सामायिकरूप- परिणत जीवके द्वारा संचित होनेवाले तीर्थकर आदि शुभकमोंको कर्मतद्व्यतिरिक्त नोआगमद्रव्य सामायिक कहते हैं । नो कर्म तद्व्यतिरिक्त तीन प्रकारका होता है - सचित्त अचित्त और मिश्र । उपाध्यायादिको सचित्त, पुस्तकादिको अचित्त, और उभयरूपको मिश्र कहते हैं । सामायिकरूप परिणत जीव जहाँपर स्थित हो उस गिरनार चम्पापुर पावापुर कैलाश आदि स्थानको क्षेत्र सामायिक, और जिस समय में वह सामायिकस्वरूप परिणत हो उस प्रातः काल मध्यान्हकाल और सायंकाल आदि समयको कालसामायिक कहते हैं।' वर्तमान में जो सामायिक पर्याय से युक्त है उसको भावसामायिक कहते हैं। इसके भी दो भेद हैं- आगम भावसामायिक और नो आगम भावसामायिक । सामायिक शास्त्र के जाननेवाले उपयुक्त आत्माको आगमभाव सामायिक कहते हैं । नो आगमभावके दो भेद हैं-उपयुक्त और तत्परिणत । जो सामायिक शास्त्र के विना ही सामायिकके अर्थका विचार कर रहा है- उधर उपयुक्त है उसको उपयुक्त नो आगमभावसामायिक, और जो रागद्वेष के अभावरूप परिणत है उसको तत्परिणत नोआगमभाव सामायिक कहते हैं।.
asiपर सामायिक विषयमें ही नामादि निक्षेप घटित किये हैं किन्तु इसी प्रकार चतुर्विंशतिस्तवनादि आवश्यकोंके विषय में भी घट सकते हैं सो स्वयं घटित करलेने चाहिये । तथा इस विषय में एक बात और भी
धर्म०
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