________________
अनगार
भावार्थ--धर्मोपदेश नामक स्वाध्याय तपके ये चार मेद हैं । इस तपका निरन्तर पालन करनेकी इच्छा रखनेवाले मुमुक्षुओंको ये चार प्रकारको ही कथाएं करनी चाहिये ।
स्वाध्यायके फल बताते हैं:प्रज्ञोत्कर्षजुषः श्रुतस्थितिपुषश्चेतोक्षसंज्ञामुषः, संदेहाच्छदुराः कषायभिदुराः प्रोद्यत्तपोमेदुराः । संवेगोल्लासिताः सदध्यवसिताः सर्वातिचारोज्झिताः,
खाध्यायात परवाद्यऽशङ्कितधियः स्युः शासनोद्भासिनः ॥ ८९॥ मुमुक्षुओंको स्वाध्यायके प्रसादसे अनेक प्रकारके फल प्राप्त होते हैं। यथा:--स्वाध्याय करनेवालोंकी तकवितकरूप बुद्धि इसके निमित्तसे ही प्रीतिपूर्वक उत्कर्पको धारण किया करती है । एवं वे परमागमकी स्थितिको भी इसके बलसे ही पुष्ट रख सकते हैं। तथा इन्द्रिय और अनिन्द्रिय-मन एवं आहार भय मैथुन और परिग्रह इन चार संज्ञा ओंका प्रतिरोध-निग्रह, तथा संशयों-अनेक प्रकारकी शंकाओंका निराकरण, एवं क्रोधादिक कषायोंका नाश, इसके द्वारा ही कर सकते हैं। तपस्विगणभी इसमें प्रवृत्त होनेपर ही दिनपर दिन बढते हुए तपसे पुष्ट हो सकते हैं। संवेग के द्वारा उत्कृष्ट शोमाको प्राप्त हुए प्रशस्त परिणामोंकी सिद्धि भी इसीसे हो सकती है। अथवा उत्पाद व्यय ध्रौव्य स्वरूपसे युक्त वस्तुका निश्चय स्वाध्याय करनेसे ही हो सकता है। इसमें प्रवृत होनेसे सम्यग्दर्शन सम्यग्ज्ञान या सम्यश्चारित्र किसीमें भी अतीचार नहीं लग सकता । एवं इसके बलसे ही विद्वान्लोग बौद्धादिक परवादियों से निःशंक रहते और जिनधर्मकी प्रभावनां कर सकते हैं।
___ स्वाध्यायके स्तुतिरूप फलको बताते हैं:-- शुद्धज्ञानघनार्हदभुतगुणग्राममहव्याधी,स्तद्वयक्त्युद्धरनुतनोक्तिमधुरस्तोत्रस्फुटोद्गारगीः ।
बध्याय
७१७