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बनगार
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चध्याय
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KK C
कान्दप कैल्विषी आभियोगा दानवी और संमोहा इस तरह दुर्भावनाएं पांच प्रकारकी मानी हैं। जो साधु इनमें प्रवृत्त होता है वह देवगतिमें जाकर भी भाण्ड तौरिक काहार शौनिक कुक्कर आदि नीच अवस्थाओं को धारण करता है, अर्थात् मरकर कुदेव होता है । अत एव इन कुत्सित भावनाओंको छोडकर और अपने मनको वशमें करके जो निरंतर तपोभावना और श्रुतभावनामें लीन रहता है, तथा इस तप और श्रुतका सदा अभ्यास और इसीके बलपर साहसिकता के निरंतर उद्दीप्त रहनेसे अत्यंत भयंकर वेतालादिकोंसे भी जो कभी भयको प्राप्त नहीं होता किन्तु पुनः पुनः एकत्वका विचार किया करता है वह साधु निरंतर संतोषामृत के पान करनेमें रत रहा करता है और इसीलिये वह कभी भी क्षुधा पिपासा आदि परीषहोंसे पीडित नहीं हो सकता ।
भावार्थ - दुर्भावनाओंका परित्याग और मनका निर्दलन करके जो मुमुक्षु तप श्रुत सत्व और एकत्वका निरन्तर अभ्यास करता हुआ धैर्यको धारण करता है वही परीषद्दोंका विजेता हो सकता है। मिथ्या और समीचीन भावनाओंका स्वरूप इसप्रकार है:
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कन्दर्प (रागके उद्रेकसे इसी दिल्लगी के साथ साथ अशिष्ट शब्द बोलना ) कौत्कुच्य ( शरीरसे दुश्वेश करते हुए अश्लील दिल्लगी करना और भंड वचन बोलना ) विहेतन ( प्रतारणा करना, या किसीको यातना देना आदि) यद्वा केवल परिहास करना अथवा चाटु कारके शब्द बोलना या दूसरोंको विस्मय उत्पन्न करना इत्यादि अनेक प्रकारकी क्रियाओंके निरंतर करनेको कान्दप भावना कहते हैं । केवली श्रुत धर्म आचार्य और साधुओं के अवर्णवाद -- असद्भूत दोषोंके निरूपण करने तथा मायाचार रखनेको heart atta कहते हैं । आनन्दोत्पादक रस ऋद्धियोंके निमित्तसे मंत्र अभियोग कौतुक या भूतक्रीडा आदि अनेक तरहके कर्म करनेमें निरत रहनेको अभियोग भावना कहते हैं। क्रोध रोष आदि कषायोंसे आविभूर्त रहना तथा लडाई झगडों आदि में आसक्त रहना एवं करुणा या कोमलता अथवा सहानुभूति आदिक भावोंसे रहित प रिणामोंका रखना दानवी भावना कही जाती है । सन्मार्ग के प्रतिकूल और मिथ्यामार्ग के समर्थन करनेमें अपनी बुद्धिकी पटुता प्रकट करना तथा प्राणियोंको मोह - मिथ्यात्व अथवा रागद्वेषादिकसे मोहित करना आदि संमोहा भावना कही जाती है।
TEASER NAMAS
धर्म
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