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अनगार
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अध्याय
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हैं। वाम या दक्षिण किसी भी एक भागसे सोनेको एकपार्श्वशय्या कहते हैं । बाहिर निरावरण स्थान में सोनेको अवकाशशय्या कहते हैं । इस प्रकार शयन के भी अनेक भेद होते हैं।
अवग्रह - अनेक प्रकारकी बाधाओंके जीतनेको अवग्रह कहते हैं । यह भी अनेक प्रकारका हो सकता हैं । यथा - थूकने वो खकारनेकी बाधाको जीतना, छींक या जंभाईको रोकना, खुजली मालुम पडनेपर भी खुजाना नहीं, तृप्प कांटा या किसी तरहकी लकडी आदिके लगजानेपर खिन्न न होना, फोडा फुंसी या फफोला आदिके होजानेपर भी दुःखी न होना, कंकड पत्थरोंके लगजानेपर या वैसी निम्नोन्नतादिक भूमिके स्पर्श से भी खेद न मानना, यथासमय केशों का उत्पाटन करना और उसकी पीडाकी तरफ लक्ष्य न देना, रात्रि में भी नहीं सोना, कभी स्नान न करना, और न कभी दांतोंको मांजना । इत्यादि अवग्रहके अनेक भेद हैं। क्योंकि जिन क्रियाओं और अभिप्रायोंसे धर्मकृत्यों के साधन करने में सहायता मिल सकती है उन सभीको अवग्रह कह सकते हैं।
योग — इसके भी आतपनादिक अनेक भेद हैं। आतपन कहलाता है । इसी प्रकार वर्षा ऋतु में वृक्षके नीचे इत्यादि अनेक प्रकारसे योग हुआ करता है।
ग्रीष्म ऋतु में पर्वत के शिखरपर सूर्य के सम्मुख खडे होना और शीतकाल में चौरायेपर ध्यानादिके लिये बैठना;
भावार्थ -- यह बात पहले भी कही जा चुकी है कि दुःखोंको सहन करनेका अभ्यास न रहनेसे कदाचित दुःखों के उपस्थित होते ही ज्ञान ध्यान आदि सब कुछ छूट जाता है अत एव साधुओं को अपनी शक्ति के अनुसार दुःखों के सहन करते रहने का अभ्यास करना चाहिये । इसीलिये यहांपर अनेक उपायोंसे कायक्लेश करनेका उपदेश दिया है जिससे कि स्वाध्याय और ध्यानादिकके साधनमें तथा दूसरे भी सम्पूर्ण अवश्यपालनीय कर्तव्योंमें आ पक्षियोंके आजानेपर बाधा न पड जाय ।
इस प्रकार बाहरङ्ग तबके छह भेदोंका वर्णन समाप्त हुआ। अब अन्तरङ्ग तपका व्याख्यान करते हैं । इस तपके प्रायश्चित्तार्दिक छह भेदोंका नाम पहले लिखा जा चुका है । यहांपर सबसे पहले यह बताते हैं कि तपके इन छह भेदोंको अन्तरम कहनेका कारण क्या है १ :
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धर्म०
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